
Land owner: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किसी भूस्वामी को अनिश्चितकाल तक भूमि के उपयोग से वंचित नहीं किया जा सकता है।
प्रतिबंध को अनिश्चित काल तक खुला नहीं रखा जा सकता…
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने मुम्बई हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी कर कहा, जमींदार को कई वर्षों तक भूमि के उपयोग से वंचित नहीं किया जा सकता है। एक बार जब भूस्वामी पर भूमि का उपयोग किसी विशेष तरीके से नहीं करने का प्रतिबंध लगा दिया जाता है, तो उक्त प्रतिबंध को अनिश्चित काल तक खुला नहीं रखा जा सकता है।
खरीददारों को भी अब जमीन का उपयोग करने की अनुमति नहीं दे रहा
पीठ ने महाराष्ट्र क्षेत्रीय और नगर नियोजन अधिनियम, 1966 की धारा 127 का जिक्र करते हुए कहा कि पिछले 33 वर्षों से विकास योजना में भूखंड को आरक्षित रखने का कोई मतलब नहीं है। अदालत ने कहा, प्राधिकरण ने न केवल मूल मालिकों को जमीन का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी, बल्कि खरीददारों को भी अब जमीन का उपयोग करने की अनुमति नहीं दे रहा है। पीठ ने कहा, कानून ने महाराष्ट्र क्षेत्रीय और नगर नियोजन अधिनियम, 1966 की धारा 126 के तहत भूमि अधिग्रहण के लिए दस साल की अवधि प्रदान की है। महाराष्ट्र अधिनियम 42, 2015 द्वारा संशोधन से पहले भूमि अधिग्रहण के लिए नोटिस देने के लिए भूमि मालिक को अतिरिक्त एक वर्ष का समय दिया गया है। ऐसी समयसीमा पवित्र है और राज्य या राज्य के तहत अधिकारियों द्वारा इसका पालन किया जाना चाहिए।
विकास के लिए भूमि विकास योजना प्रस्तुत की थी
शीर्ष अदालत एक मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें एक खाली भूखंड के मालिकों ने 2.47 हेक्टेयर के विकास के लिए भूमि विकास योजना प्रस्तुत की थी। योजना को मंजूरी दे दी गई थी और शेष क्षेत्र को 1993 में अधिनियम के तहत संशोधित विकास योजना में एक निजी स्कूल के लिए आरक्षित दिखाया गया था। हालांकि, 1993 से 2006 तक महाराष्ट्र अधिकारियों द्वारा निजी स्कूल के लिए संपत्ति अधिग्रहण करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई।