
Petitioners at Supreme Court premises...Courtesy Agency
Waqf-1: सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, यह मुसलमानों की धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों को संचालित करने की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां गिनाईं
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ के समक्ष सिब्बल ने विवादास्पद प्रावधानों का उल्लेख किया और मुस्लिम संगठनों एवं अन्य याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां गिनाईं। सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने अधिनियम के कुछ मुख्य प्रावधानों जैसे कि न्यायालय द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों की ‘डिनोटिफिकेशन’ की शक्ति और केंद्रीय वक्फ परिषदों व बोर्डों में गैर-मुसलमानों को शामिल करने पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखा।
अनुच्छेद 26 का हवाला दिया
कपिल सिब्बल ने बताया कि नए कानून के अनुसार कोई व्यक्ति तभी वक्फ बना सकता है, जब वह पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा हो। उन्होंने अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए कहा, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय को अपने धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों की स्थापना, संचालन और धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है। यह मेरा संवैधानिक अधिकार है। मुसलमानों को वक्फ के रूप में संपत्ति रखने और उसका कानूनी प्रशासन करने का अधिकार है। यह मौलिक अधिकार हैं, और कोई भी कानून जो धार्मिक प्रथाओं या संपत्ति अधिकारों में हस्तक्षेप करता है, उसे उचित और आनुपातिक होना चाहिए।
संसद कानून बना सकती है, मगर…
सिब्बल ने कहा, यह अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है, जो धार्मिक समुदायों को अपने मामलों का प्रबंधन स्वयं करने का अधिकार देता है। वर्तमान रूप में वक्फ अधिनियम संसद की धार्मिक स्व-शासन क्षेत्र में अतिक्रमण का उदाहरण है। संसद कानून बना सकती है, लेकिन वह मेरी धर्म की मूलभूत और अभिन्न बातों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। अंत में उन्होंने कहा, यह अधिनियम 20 करोड़ मुसलमानों के विश्वास पर राज्य का नियंत्रण है।
सिब्बल ने इस संशोधन की कई धाराओं पर आपत्ति जताई
- धारा-5 वर्षों की इस्लामी प्रथा: यदि मैं जन्म से मुसलमान हूं, तो मेरी व्यक्तिगत कानून प्रणाली स्वतः ही लागू होनी चाहिए। यह साबित करने की आवश्यकता क्यों हो कि मैं पांच वर्षों से मुसलमान हूं?
- वक्फ बाय यूज़र (Waqf by user): संशोधन से पहले की “वक्फ बाय यूज़र” संपत्तियों को मान्यता दी गई है, लेकिन भविष्य में ऐसी मान्यता नहीं दी जाएगी।
यह मेरे धर्मानुसार वक्फ बनाने के अधिकार का उल्लंघन है। Waqf by user” वह प्रथा है जिसमें कोई संपत्ति केवल उसके लंबे समय से धर्मार्थ उपयोग के आधार पर वक्फ मानी जाती है, भले ही उसके लिए कोई औपचारिक दस्तावेज न हो। - धारा 3C सरकारी भूमि का निर्धारण: कैसे कोई सरकारी अधिकारी — जो इस मामले में स्वयं ही पक्ष है — यह निर्णय ले सकता है कि कोई संपत्ति सरकारी है या नहीं?
- धारा 3D विरासत स्मारकों पर वक्फ: अगर कोई संपत्ति संरक्षित स्मारक घोषित हो चुकी है, तो उस पर वक्फ अमान्य होगा। तो उन मस्जिदों का क्या होगा जो स्मारकों का हिस्सा हैं?
- अनुसूचित जनजातियों की भूमि पर वक्फ पर रोक: यह प्रावधान बहुत व्यापक और असंगत है। सभी आदिवासी क्षेत्र एक जैसे नहीं हैं। कई अनुसूचित जनजातीय मुसलमान इससे प्रभावित होंगे।
- केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुसलमान सदस्य: जब हिंदू और सिख धार्मिक बोर्डों में केवल उनके धर्म के ही सदस्य होते हैं, तो मुस्लिम वक्फ परिषद में गैर-मुसलमानों को शामिल करना क्यों?