
Allahabad High Court
UP HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपी को जमानत देते हुए टिप्पणी की कि शिकायतकर्ता महिला ने स्वयं मुसीबत को न्योता दिया। जब वह शराब पीने के बाद अपनी मर्जी से आरोपी के घर गई।
पीड़िता ने स्वीकारा, वह बालिग है और पीजी हॉस्टल में रहती है
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य हाईकोर्ट जज के असंवेदनशील आदेश पर रोक लगाई थी, जो दुष्कर्म के प्रयास से जुड़े मामले में दिया गया था। न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह द्वारा पिछले महीने पारित आदेश में कहा गया कि पीड़िता एमए की छात्रा है। वह अपने कार्यों के नैतिक और सामाजिक महत्व को समझने में सक्षम थी। आवेदक की ओर से यह दलील दी गई कि पीड़िता स्वयं यह स्वीकार कर चुकी है कि वह बालिग है और एक पीजी हॉस्टल में रहती है। उसने अपनी मर्जी से अपनी महिला और पुरुष मित्रों के साथ एक रेस्टोरेंट में जाकर शराब पी, जिससे वह अत्यधिक नशे में हो गई।
पीड़िता खुद ही आरोपी के घर आराम करने आई थी
आवेदक के वकील ने कहा कि महिला सुबह 3 बजे तक बार में अपने दोस्तों के साथ रही। चूंकि उसे सहारे की जरूरत थी, उसने खुद ही आवेदक के घर जाकर आराम करने की बात मानी। महिला द्वारा लगाए गए आरोप में बताया कि आवेदक उसे अपने किसी रिश्तेदार के फ्लैट में ले गया और दो बार दुष्कर्म किया। वकील ने कोर्ट को बताया कि यह झूठे हैं और रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों के विपरीत हैं। यह भी कहा गया कि महिला द्वारा प्रस्तुत तथ्यों के अनुसार, यह मामला दुष्कर्म का नहीं बल्कि संभवतः दोनों पक्षों की सहमति से संबंध बनाने का हो सकता है।
पीड़िता और आवेदक दोनों व्यस्क हैं…नैतिक और सामाजिक प्रभाव को समझने में सक्षम
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, पक्षकारों की दलीलें सुनने और पूरे मामले का अवलोकन करने के बाद, यह निर्विवाद है कि दोनों पीड़िता और आवेदक वयस्क हैं। पीड़िता एमए की छात्रा है। अतः वह अपने कार्यों के नैतिक और सामाजिक प्रभाव को समझने में सक्षम थी। यह अदालत मानती है कि भले ही पीड़िता के आरोपों को सही मान भी लिया जाए, तो भी यह कहा जा सकता है कि उसने स्वयं मुसीबत को न्योता दिया और इसके लिए वह स्वयं भी जिम्मेदार है। पीड़िता के बयान में भी इसी तरह की बात कही गई है। मेडिकल जांच में उसका हायमेन फटा पाया गया, लेकिन डॉक्टर ने यौन उत्पीड़न पर कोई स्पष्ट राय नहीं दी। आवेदक को जमानत देते हुए कोर्ट ने कहा, मामले की परिस्थितियों, अपराध की प्रकृति, साक्ष्यों, आरोपी की संलिप्तता और दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए, अदालत मानती है कि आवेदक को जमानत देने का मामला बनता है।
26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश पर लगा चुकी है रोक
गौरतलब है कि 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक अन्य आदेश पर रोक लगाई थी, जिसमें कहा गया था कि किसी महिला की छाती पकड़ना और उसके पायजामे की नाड़ खींचना दुष्कर्म का प्रयास नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को पूरी तरह से असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण वाला बताया। यह टिप्पणियां न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा द्वारा 17 मार्च को दिए गए फैसले में की गई थीं।