
Supreme court
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पुष्टि करने वाले साक्ष्य के अभाव में संदिग्ध मृत्यु-पूर्व कथन के आधार पर दोषी ठहराना सुरक्षित नहीं है।
मृत्यु-पूर्व कथन एक महत्वपूर्ण साक्ष्य है
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि मृत्यु-पूर्व कथन एक महत्वपूर्ण साक्ष्य है। केवल इसी पर भरोसा करके दोषसिद्धि की जा सकती है क्योंकि आपराधिक कानून में इसका बहुत महत्व है। हालांकि, मृत्यु-पूर्व कथन की गुणवत्ता का पता लगाने और किसी दिए गए मामले के संपूर्ण तथ्यों पर विचार करने के बाद ही इस पर भरोसा किया जाना चाहिए। इस कारण सर्वोच्च न्यायालय ने सितंबर 2008 में अपनी पत्नी को जलाकर कथित रूप से हत्या करने के दोषी एक व्यक्ति को बरी कर दिया था। पीठ ने कहा कि निचली अदालत ने उसे उसकी पत्नी के मृत्यु-पूर्व कथन के आधार पर दोषी ठहराया था।
बयान पर संदेह हो तो पुष्टि करनेवाले साक्ष्यों पर गौर करें
पीठ ने 4 मार्च के अपने फैसले में कहा, यदि मृतक के मृत्यु-पूर्व दिए गए बयान पर संदेह हो या मृतक के मृत्यु-पूर्व दिए गए बयानों में विरोधाभास हो, तो अदालतों को यह पता लगाने के लिए पुष्टि करने वाले साक्ष्यों पर गौर करना चाहिए कि किस मृत्यु-पूर्व दिए गए बयान पर विश्वास किया जाए। न्यायालयों को ऐसे मामलों में सावधानी से काम करना चाहिए। पीठ ने कहा, ऐसे मामलों में जहां मृत्यु पूर्व बयान संदिग्ध है, पुष्टि करने वाले साक्ष्य के अभाव में आरोपी को दोषी ठहराना सुरक्षित नहीं है।
मजिस्ट्रेट व मृत्यु पूर्व दिए गए बयान में आई भिन्नता…
अदालत ने कहा, यह बात रिकॉर्ड में आई कि पीड़िता ने दो बयान दिए जो उसके बाद के बयानों से पूरी तरह से अलग थे, जिसमें न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दिया गया बयान भी शामिल है जो उसका आधिकारिक मृत्यु पूर्व बयान बन गया। पीठ ने कहा कि जांच में दहेज उत्पीड़न के पहलू को भी खारिज कर दिया गया। आदेश में पाया गया कि आरोपी और महिला के परिवारों के बीच संबंध खराब हो गए थे और महिला की मौत के कुछ साल बाद, व्यक्ति के भाई ने अपने ससुर और साले के खिलाफ मारपीट का मामला दर्ज कराया था। उसकी अपील स्वीकार करते हुए पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के फरवरी 2012 के आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें हत्या के कथित अपराध के लिए उसकी दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा गया था।
आग लगाने के मामले में दो बातें सामने आईं
अभियोजन पक्ष के अनुसार, पति द्वारा आग लगाए जाने के तीन सप्ताह बाद महिला की अस्पताल में जलने से मौत हो गई। यह दम्पति अपने नाबालिग बेटे के साथ तूतीकोरिन में रहता था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि महिला ने अस्पताल में पुलिस को बताया कि आग रसोई में हुई दुर्घटना के कारण लगी थी। हालांकि, तीन दिन बाद पुलिस ने पीड़िता का एक और बयान दर्ज किया जिसमें उसने दावा किया कि उसके पति ने उस पर केरोसिन डालकर आग लगा दी।