
Supreme Court
Telangana News: सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना में सिविल जज के पद के लिए तेलुगु भाषा में दक्षता को अनिवार्य करने वाले 2023 के नियम को बरकरार रखने के आदेश को याचिका खारिज कर दिया।
शीर्ष कोर्ट में याचिका को खारिज किया
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, “यह (नियम) केवल कहता है कि आपको तेलुगु भाषा जाननी चाहिए। दरअसल, हाईकोर्ट के फैसले को याचिका के माध्यम से शीर्ष कोर्ट में चुनौती दी गई थी। एक प्रैक्टिसिंग वकील ने याचिकाकर्ता के रूप में अप्रैल 2024 की अधिसूचना के तहत सिविल जज के पद के लिए आवेदन किया था। हाई कोर्ट में, उन्होंने तेलंगाना राज्य न्यायिक (सेवा और संवर्ग) नियम, 2023 की नियमावली 5.3 और 7(1) में भाषा की आवश्यकता के प्रावधान को संविधान विरोधी बताते हुए चुनौती दी थी।
तेलुगु या उर्दू में से किसी एक भाषा में दक्षता का विकल्प प्रदान की मांग
याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की थी कि सिविल जज बनने के लिए योग्यता के तौर पर तेलुगु या उर्दू में से किसी एक भाषा में दक्षता का विकल्प प्रदान किया जाए, और साथ ही 2023 के नियमों के तहत आयोजित लिखित परीक्षा में अंग्रेजी से तेलुगु या उर्दू तथा इसके विपरीत अनुवाद करने का विकल्प भी दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि तेलंगाना में 15 प्रतिशत आबादी उर्दू भाषी है। वकील ने यह भी कहा कि उनके मुवक्किल ने पात्रता परीक्षा पास कर ली है। हालांकि, पीठ ने इस याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया और इसे खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में दिया था तर्क
तेलंगाना हाई कोर्ट में, याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया था कि चूंकि उर्दू को राज्य में दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है, इसलिए यह अनुचित और अन्यायपूर्ण है कि सिविल जजों की भर्ती के नियमों में उर्दू या तेलुगु में से किसी एक में दक्षता का विकल्प नहीं दिया गया। हाई कोर्ट ने अपने पिछले वर्ष नवंबर के आदेश में कहा था, यह स्थापित सिद्धांत है कि सेवा की शर्तों, पात्रता और योग्यता आदि तय करना नियोक्ता के क्षेत्राधिकार में आता है। नियोक्ता ही इन पहलुओं का सबसे अच्छा निर्णायक होता है। इन पहलुओं पर न्यायिक समीक्षा का दायरा बहुत सीमित है।
अधिकारियों का निर्णय नीति-निर्णय के क्षेत्र में आता है: हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने आगे कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि जिन भर्ती नियमों को चुनौती दी गई थी वे मनमाने, भेदभावपूर्ण या संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करने वाले थे। याचिका खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि चूंकि अधिकारियों का निर्णय नीति-निर्णय के क्षेत्र में आता है, जो न्यायिक प्रशासन के उत्थान के लिए लिया गया था, इसलिए इसे केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता कि कोई दूसरा दृष्टिकोण भी संभव था।