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Supreme Court News:सुप्रीम कोर्ट ने कहा,संवैधानिक पद के संदर्भ में ‘एक पद, एक पेंशन’ का सिद्धांत लागू होना चाहिए।
संविधान के अनुच्छेद 14 की चर्चा
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि सभी सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को समान पेंशन लाभ देने का निर्देश दिया है, चाहे उनकी नियुक्ति का तरीका या कार्यकाल कुछ भी रहा हो। एक पद, एक पेंशन” संवैधानिक पदों के लिए मानक होना चाहिए। बार या जिला न्यायपालिका से आए न्यायाधीशों, या स्थायी और अतिरिक्त न्यायाधीशों के आधार पर पेंशन लाभ में कोई भी वर्गीकरण अनुचित और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
63 पृष्ठों के निर्णय में पेंशन आदि छह मुद्दों पर विचार
मुख्य न्यायाधीश ने 63 पृष्ठों के निर्णय में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों में असमानता से जुड़े छह मुद्दों पर विचार करते हुए, शीर्ष अदालत ने फैसला दिया कि सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को प्रति वर्ष ₹13.50 लाख की मूल पेंशन मिलनी चाहिए, जबकि सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों को ₹15 लाख प्रति वर्ष की पेंशन का अधिकार होगा। न्यायालय ने कहा, “एक पद, एक पेंशन का सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि उच्च न्यायालय के सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को समान पेंशन मिले। एक बार जब कोई व्यक्ति उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के संवैधानिक वर्ग में प्रवेश करता है, तो महज़ नियुक्ति की तिथि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
सेवा के अंतर को पेंशन लाभ न देने का आधार नहीं बनाया जाए
पीठ ने कहा कि जब कोई उच्च न्यायालय का न्यायाधीश पद पर होता है, तो उसके प्रवेश के स्रोत की परवाह किए बिना, उसे समान वेतन और सुविधाएं मिलती हैं। जब सभी न्यायाधीश सेवा में रहते हुए समान वेतन, भत्ते और सुविधाओं के अधिकारी होते हैं, तो सेवा में उनके प्रवेश के स्रोत के आधार पर भेदभाव करना स्पष्ट रूप से अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा। अदालत ने यह भी कहा कि जो न्यायिक अधिकारी बाद में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने हों, या जो बार से न्यायाधीश बने हों, उनकी सेवा और अनुभव को पेंशन निर्धारण में ध्यान में रखा जाना चाहिए। जिला न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्ति और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद ग्रहण करने की तिथि के बीच की सेवा में अंतर (ब्रेक) को पेंशन लाभ न देने का आधार नहीं बनाया जा सकता।” ऐसे न्यायाधीशों की पेंशन का निर्धारण भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में मिले वेतन के आधार पर होना चाहिए।
पेंशन भुगतान में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं हो: कोर्ट
यह भी कहा गया कि यदि कोई व्यक्ति उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होता है, भले ही वह न्यू पेंशन स्कीम (NPS) लागू होने के बाद राज्य न्यायपालिका में नियुक्त हुआ हो, तब भी उसे हाईकोर्ट जजेज़ एक्ट, 1954 के अंतर्गत जनरल प्रोविडेंट फंड (GPF) का लाभ मिलना चाहिए। न्यायालय ने अपने निर्णय में विभिन्न मामलों का हवाला देते हुए कहा कि सभी में एक सामान्य धारा यह रही है कि पेंशन के भुगतान में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने यह मुद्दा भी उठाया कि क्या जिला न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्ति और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण करने के बीच के अंतराल के कारण पूर्ण पेंशन से इनकार किया जा सकता है। इस पर अदालत ने कहा कि ऐसा करना अनुचित होगा।
सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को भी समान पेंशन का अधिकार जरूरी
यह भी स्पष्ट किया गया कि NPS लागू होने के बाद राज्य न्यायपालिका में नियुक्त उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को भी समान पेंशन का अधिकार होना चाहिए। जहां तक NPS के अंतर्गत ऐसे न्यायाधीशों और राज्य द्वारा किए गए अंशदान का प्रश्न है, अदालत ने कहा, राज्यों को न्यायाधीशों द्वारा किया गया अंशदान और उस पर अर्जित लाभांश उन्हें वापस करना होगा। राज्य द्वारा किए गए अंशदान और लाभांश को राज्य के खाते में ही रखा जाना उचित होगा। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि जो न्यायाधीश अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं, उन्हें भी स्थायी उच्च न्यायालय न्यायाधीशों की तरह पेंशन मिलेगी।
HCJ अधिनियम की धारा 14 में ‘न्यायाधीश’ की परिभाषा
पीठ ने कहा, HCJ अधिनियम की धारा 14 में ‘न्यायाधीश’ की परिभाषा इतनी व्यापक है कि उसमें मुख्य न्यायाधीश, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश, अतिरिक्त न्यायाधीश और कार्यवाहक न्यायाधीश शामिल हैं। इसलिए स्थायी और अतिरिक्त न्यायाधीशों के बीच कोई कृत्रिम भेदभाव करना इस परिभाषा के साथ अन्याय होगा। इसलिए, अदालत ने कहा, “हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि सेवानिवृत्त अतिरिक्त उच्च न्यायालय न्यायाधीशों को भी ₹13.50 लाख प्रति वर्ष की समान मूल पेंशन मिलेगी। जहां परिवार पेंशन और ग्रेच्युटी से अतिरिक्त उच्च न्यायालय न्यायाधीशों की विधवाओं और परिवार के सदस्यों को वंचित किया गया, उसे अदालत ने “स्पष्ट रूप से मनमाना” करार दिया। यह भी कहा गया कि सेवा में रहते हुए मृत्यु हो जाने की स्थिति में न्यायाधीश की विधवा और परिवार को ग्रेच्युटी से वंचित करना पूरी तरह अनुचित है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के सेवानिवृत्त होने पर प्रोविडेंट फंड और अन्य लाभों के भुगतान से संबंधित मामले में, अदालत ने निर्णय दिया कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश को उनके उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के तरीके की परवाह किए बिना HCJ अधिनियम के अनुसार सभी भत्ते मिलने चाहिए।