
Supreme Court in view
SC News: सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में कहा, मातृत्व अवकाश मातृत्व लाभ का अभिन्न हिस्सा है। यह महिलाओं के प्रजनन अधिकारों से जुड़ा है, जो अब अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का हिस्सा हैं।
बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या की
जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या करते हुए कहा कि जीवन का अधिकार केवल जीवित रहने तक सीमित नहीं है। इसमें गरिमा, स्वास्थ्य और प्रजनन विकल्प जैसे अधिकार भी शामिल हैं। पीठ ने यह भी कहा कि जनसंख्या नियंत्रण और प्रजनन अधिकार एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। इन्हें संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप संतुलित और मानवीय तरीके से लागू किया जाना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया। इसमें तमिलनाडु की एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका को मातृत्व अवकाश देने से इनकार किया गया था। इससे पहले, राज्य सरकार ने उनका आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि दो से अधिक जीवित बच्चों वाली महिलाओं को मातृत्व अवकाश नहीं दिया जा सकता। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि महिला को यह लाभ मिलेगा, भले ही उसकी पहली शादी से दो बच्चे हैं।
मातृत्व लाभ अधिनियम में बच्चों की संख्या पर रोक नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 में यह कहीं नहीं लिखा है कि दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं को मातृत्व अवकाश नहीं मिलेगा। इसमें केवल अवकाश की अवधि तय की गई है-दो से कम बच्चों पर 26 हफ्ते और दो से अधिक पर 12 हफ्ते। यानी लाभ से इनकार नहीं किया जा सकता।