
Supreme Court
SC News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आजकल आरोपी व्यक्ति जमानत या गिरफ्तारी से बचाव के लिए दायर याचिकाओं में अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि को छिपाते हैं।
अदालत ने याचिका खारिज किया
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने कहा, यह एक बढ़ता हुआ चलन बनता जा रहा है कि व्यक्ति इस अदालत से जमानत या गिरफ्तारी से संरक्षण पाने के लिए विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition) दायर करते हैं, लेकिन अन्य आपराधिक मामलों में अपनी संलिप्तता का खुलासा नहीं करते हैं। इस टिप्पणी के साथ ही अदालत ने एक हत्या के आरोपी की जमानत याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता ने महत्वपूर्ण तथ्यों को दबाया है।
यह स्पष्ट करना होगा कि: क्या उसकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि है…
पीठ ने अपने आदेश में कहा, इस अदालत ने पहले उदारता दिखाई है, लेकिन अब हमें लगता है कि ऐसी स्थिति को और आगे नहीं बढ़ने दिया जा सकता। अदालत ने आगे कहा कि अब से हर व्यक्ति जो शीर्ष अदालत में दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 438/439 (जमानत या अग्रिम जमानत) या धारा 482/483 के तहत राहत की मांग करता है, उसे अपनी विशेष अनुमति याचिका (क्रिमिनल) में यह स्पष्ट करना होगा कि: क्या उसकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि है? अगर है, तो संबंधित मामले की वर्तमान स्थिति क्या है? यदि यह जानकारी गलत पाई जाती है, तो केवल इसी आधार पर याचिका को खारिज किया जा सकता है।
इस बात को लेकर शीर्ष अदालत हुई नाराज
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने कई मामलों में आरोपी की लंबे समय तक जेल में बंद रहने या गंभीर अपराध न होने के आधार पर प्राथमिक दृष्टिकोण से नोटिस जारी किए। लेकिन बाद में जब राज्य सरकार की ओर से जवाब दाखिल हुआ, तब पता चला कि आरोपी के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। परिणामस्वरूप, देश की सर्वोच्च अदालत को गुमराह किया गया। अब आगे ऐसी स्थिति को स्वीकार नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी माना कि इस दिशा-निर्देश के पालन से कुछ लोगों को असुविधा हो सकती है, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए यह जरूरी है। रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया है कि वह इस आदेश को सभी संबंधित पक्षों के संज्ञान में लाए, जब तक कि नियमों में संशोधन नहीं हो जाता।
यह है संबंधित मामला
यह आदेश एक हत्या के आरोपी द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट के 3 अक्टूबर 2023 के आदेश को चुनौती देने पर आया था, जिसमें उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत को बताया कि आरोपी पर 8 आपराधिक मामले हैं, जिनमें से एक चोरी के मामले में उसे सजा भी हो चुकी है। पीठ ने कहा, याचिकाकर्ता ने अपने आपराधिक मामलों की जानकारी छिपाई है, इसलिए वह इस अदालत की विवेकाधीन राहत (जमानत) पाने का पात्र नहीं है। वैसे भी, ट्रायल पर्याप्त रूप से आगे बढ़ चुका है, इसलिए जमानत का कोई औचित्य नहीं बनता।
पुराने आदेशों की पुनः पुष्टि की
13 अक्टूबर 2023 और 19 अक्टूबर 2023 को भी सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में याचिका दाखिल करते समय सभी महत्वपूर्ण जानकारी जैसे अभियुक्त की उम्र, पुलिस रिपोर्टिंग का विवरण, चार्जशीट, गवाहों की संख्या आदि को अनिवार्य रूप से दर्ज करने का निर्देश दिया था। इन आदेशों के आलोक में सुप्रीम कोर्ट अब याचिकाओं की समीक्षा में अधिक सतर्क और सख्त रुख अपनाने जा रही है, जिससे न्यायिक समय की बर्बादी और अनावश्यक स्थगन से बचा जा सके।