
Supreme-Court
SC News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से न्यायिक फैसलों की गुणवत्ता में काफी सुधार होगा, खासकर महिलाओं से जुड़े मामलों में।
महिला न्यायिक अधिकारी की सेवा बहाली का आदेश
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने यह टिप्पणी राजस्थान की एक महिला न्यायिक अधिकारी की सेवा बहाली का आदेश देते हुए की। यह महिला फरवरी 2019 में दो साल की प्रोबेशन पर नियुक्त हुई थी, लेकिन मई 2020 में उसे यह कहकर सेवा से हटा दिया गया कि वह स्थायी नियुक्ति के लिए उपयुक्त नहीं है। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना सिर्फ न्यायपालिका के लिए ही नहीं, बल्कि समाज में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए भी जरूरी है।
मामूली चूक के लिए नौकरी से निकालना ‘कैपिटल पनिशमेंट’ जैसा
महिला अनुसूचित जनजाति वर्ग से है और उसने 2017 में राजस्थान न्यायिक सेवा परीक्षा पास की थी। उस समय वह एक चिकित्सकीय स्थिति से भी जूझ रही थी। राजस्थान हाईकोर्ट ने अगस्त 2023 में उसकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। कोर्ट ने कहा कि महिला को एक मामूली चूक के लिए नौकरी से निकालना ‘कैपिटल पनिशमेंट’ जैसा है। उसने अपने पूर्व सरकारी सेवा की जानकारी नहीं दी थी, लेकिन इसके पीछे उसका तर्क उचित था। वह दिसंबर 2014 में राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग में शिक्षक बनी थी और अक्टूबर 2018 में इस्तीफा दे दिया था, जिसे दिसंबर 2018 में स्वीकार किया गया।
महिला का इंटरव्यू 2 नवंबर 2018 को हुआ था
उसका इंटरव्यू 2 नवंबर 2018 को हुआ था, जबकि उसने 25 अक्टूबर को ही इस्तीफा दे दिया था। ऐसे में यह कोई गंभीर अनियमितता नहीं थी, जिसे आधार बनाकर उसे सेवा से हटाया जाए। कोर्ट ने कहा कि यह मामला ऐसा नहीं है जहां महिला ने कोई आपराधिक जानकारी छिपाई हो, जिससे उसकी न्यायपालिका के प्रति प्रतिबद्धता पर सवाल उठे। साथ ही, यह भी कहा गया कि प्रोबेशन के दौरान उसके प्रदर्शन को लेकर कोई शिकायत नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि प्रोबेशन पर नियुक्त किसी कर्मचारी की सेवा या तो स्थायी की जाती है या साधारण रूप से समाप्त की जाती है। लेकिन अगर सेवा समाप्ति सजा के रूप में की जाती है, तो यह उस व्यक्ति की छवि पर दाग छोड़ती है। इस मामले में ऐसा करना गलत था।
महिलाओं की भागीदारी से जुड़ी कोर्ट की अहम बातें
- महिलाओं की न्यायपालिका में भागीदारी को समझने के लिए तीन पहलुओं को देखना जरूरी है: पेशे में प्रवेश, उसमें टिके रहना और वरिष्ठ पदों तक पहुंचना।
- न्यायपालिका में विविधता बढ़ने से समाज और व्यक्ति की परिस्थितियों को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।
- वरिष्ठ स्तर पर महिला जजों की नियुक्ति से लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ने में मदद मिलती है।
- महिला जजों की संख्या और दृश्यता बढ़ने से अन्य क्षेत्रों जैसे विधायिका और कार्यपालिका में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ सकती है।
- इससे महिलाएं न्याय पाने के लिए आगे आने लगती हैं और अपने अधिकारों को लेकर जागरूक होती हैं।