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SC news:सुप्रीम कोर्ट ने एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा 2024 पास करने वाले एक दिव्यांग छात्र को एम्स में सीट देने का आदेश दिया है।
दिव्यांगों को शिक्षा से वंचित रखना असंवैधानिक: अदालत
शीर्ष कोर्ट के न्यायमूर्ति विक्रमनाथ व संदीप मेहता की पीठ ने कहा, दिव्यांगों के साथ संस्थागत भेदभाव खत्म होना चाहिए और उन्हें शिक्षा से वंचित करना पूरी तरह से गैरकानूनी और असंवैधानिक है। कोर्ट ने यह फैसला कबीर पहाड़िया की याचिका पर सुनाया, जिनकी दोनों हाथों में आधी उंगलियां हैं और उन्हें इसी आधार पर एमबीबीएस में दाखिला देने से मना कर दिया गया था।
दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी
कोर्ट ने कहा कि ‘राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसएबिलिटीज एक्ट, 2016’ के तहत ‘रीजनबल एकॉमोडेशन’ कोई दया नहीं, बल्कि एक मौलिक अधिकार है। कबीर की मेडिकल जांच एम्स के बोर्ड से कराई गई थी, जिसमें पाया गया कि वे अपनी उंगलियों से सभी जरूरी काम करने में सक्षम हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने कबीर की याचिका खारिज कर दी थी, जिसे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कबीर को दाखिला न देना न केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी है।
पुराने पूर्वाग्रहों पर मूल्यांकन आधारित
कोर्ट ने कहा कि दिव्यांगों की क्षमताओं का मूल्यांकन व्यक्तिगत, वैज्ञानिक और साक्ष्य आधारित होना चाहिए, न कि पुराने पूर्वाग्रहों पर आधारित। कबीर को 2024-25 सत्र में दाखिला देना संभव नहीं है, इसलिए उन्हें 2025-26 सत्र में एम्स दिल्ली में अनुसूचित जाति PwBD कोटे के तहत एमबीबीएस सीट दी जाएगी।
यह रहे शीर्ष कोर्ट के अहम निर्देश
- कोर्ट ने नेशनल मेडिकल कमीशन को दो महीने में एमबीबीएस प्रवेश के दिशा-निर्देशों में बदलाव करने का आदेश दिया है, ताकि भविष्य में किसी भी योग्य दिव्यांग छात्र को दाखिले से वंचित न किया जाए।
- कोर्ट ने कहा कि दिव्यांगों को समान अवसर और गरिमा देना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि संविधान की असली भावना है। प्रशासनिक संस्थाएं जब बिना आधार के दिव्यांगों को बाहर करती हैं, तो वे ऐतिहासिक अन्याय और कलंक को बढ़ावा देती हैं।
- कबीर ने बिना किसी स्क्राइब की मदद के 10वीं में 91.5% और 12वीं में 90% अंक हासिल किए थे। उन्होंने नीट में 720 में से 542 अंक प्राप्त किए।
- उनकी दिव्यांगता 42% आंकी गई है, जिसमें दोनों हाथों की कई उंगलियों की जन्मजात अनुपस्थिति और बाएं पैर की दो उंगलियों की कमी शामिल है।
- याचिकाकर्ता की ओर से राहुल बजाज और अमर जैन (दोनों दृष्टिहीन अधिवक्ता) ने पक्ष रखा, जबकि नेशनल मेडिकल कमीशन की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक डेव और कोर्ट मित्र गौरव अग्रवाल पेश हुए।
- कोर्ट ने कहा कि दिव्यांगों के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भेदभाव खत्म किया जाना चाहिए और उन्हें प्रोफेशनल एजुकेशन में भागीदारी का पूरा अधिकार मिलना चाहिए।