
Supreme Court India
PRINCELY STATES: सुप्रीम कोर्ट ने यह तय करने पर सहमति जताई कि क्या संविधान का अनुच्छेद 363 पूर्व रियासतों और भारत सरकार के बीच हुए समझौतों से जुड़ी संपत्ति विवादों में अदालतों की सुनवाई पर रोक लगाता है।
जयपुर के राजघराने की याचिका से जुड़ा है
यह मामला जयपुर के राजघराने की याचिका से जुड़ा है, जिसमें राजमाता पद्मिनी देवी, उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी और सवाई पद्मनाभ सिंह ने टाउन हॉल (पुरानी विधानसभा) और अन्य संपत्तियों पर दावा किया है। इन संपत्तियों पर राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 363 के तहत सिविल कोर्ट में इन मामलों की सुनवाई नहीं हो सकती। अनुच्छेद 363 के तहत ऐसे किसी भी विवाद में अदालत दखल नहीं दे सकती, जो किसी रियासत और भारत सरकार के बीच हुए समझौते, संधि या अनुबंध से जुड़ा हो।
हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
राजघराने की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि जिस समझौते का हवाला दिया जा रहा है, वह पांच राजाओं के बीच हुआ था और भारत सरकार केवल गारंटर थी। उन्होंने कहा कि यह बात हाईकोर्ट में नहीं रखी गई, जिससे 17 अप्रैल को गलत फैसला आया। जस्टिस मिश्रा ने पूछा कि अगर भारत सरकार पक्ष नहीं थी, तो विलय कैसे हुआ? इस पर साल्वे ने कहा कि समझौते के बाद संविधान के अनुच्छेद 1 के तहत विलय हुआ। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि अगर भारत सरकार पक्ष नहीं थी और अनुच्छेद 363 लागू नहीं होता, तो हर रियासत अपनी संपत्ति वापस मांग सकती है।
राजस्थान सरकार को नोटिस, 8 हफ्ते बाद सुनवाई
बेंच ने इस मामले की विस्तृत सुनवाई के लिए सहमति जताई और राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया। राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने कहा कि मामला पुराना है, इसलिए सरकार विवादित संपत्तियों पर यथास्थिति बनाए रखेगी। कोर्ट ने शर्मा के बयान को रिकॉर्ड में लेते हुए अगली सुनवाई 8 हफ्ते बाद तय की।
कई संपत्तियों पर विवाद, हजारों करोड़ की कीमत
यह मामला जयपुर राजघराने और राज्य सरकार के बीच लंबे समय से चल रहे संपत्ति विवाद से जुड़ा है। जिन संपत्तियों पर विवाद है, उनमें टाउन हॉल, पुराना पुलिस मुख्यालय, होमगार्ड महानिदेशालय और पुराना लेखा कार्यालय परिसर (जलेब चौक) शामिल हैं। ये सभी संपत्तियां वर्तमान में सरकार के कब्जे में हैं। राजघराने ने पहले सिविल कोर्ट में चार मुकदमे दायर किए थे, जिनमें टाउन हॉल की वापसी, स्थायी निषेधाज्ञा और मुआवजे की मांग की गई थी। उनका कहना था कि टाउन हॉल का उपयोग 2001 तक ही हुआ, उसके बाद नई विधानसभा बन गई और यह संपत्ति अब उपयोग में नहीं है। अन्य संपत्तियों पर भी इसी तरह के दावे किए गए हैं, जिनकी कीमत हजारों करोड़ रुपए बताई जा रही है।
हाईकोर्ट ने सरकार के पक्ष में दिया था फैसला
17 अप्रैल को राजस्थान हाईकोर्ट ने जयपुर राजघराने के दावों को खारिज करते हुए कहा था कि टाउन हॉल और अन्य संपत्तियां सरकारी हैं और इन पर कोई दावा सिविल कोर्ट में नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की चार पुनरीक्षण याचिकाओं को स्वीकार करते हुए निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था।