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Pocso Case: सुप्रीम कोर्ट ने केरल के एक शिक्षक के खिलाफ POCSO एक्ट के तहत मुकदमा पुनः बहाल कर दिया। हाईकोर्ट द्वारा एफआईआर रद्द करने के तर्क को “संवेदनहीन” बताया।
आरोपी शिक्षक को निलंबन से वापस न लिया जाए
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने स्कूल प्रशासन को निर्देश दिया कि मामले की सुनवाई पूरी होने तक आरोपी शिक्षक को निलंबन से वापस न लिया जाए, जिन पर 52 छात्राओं के यौन उत्पीड़न का आरोप है। पीठ ने 13 जुलाई 2022 को हाईकोर्ट द्वारा दिया गया वह फैसला रद्द कर दिया, जिसमें आरोपी के खिलाफ एफआईआर को खारिज कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हाईकोर्ट ने साक्ष्यों में घुसकर एक तरह से मिनी ट्रायल कर लिया और यह पूर्वनिर्धारित कर लिया कि आरोपी ने यौन इरादे से कोई कृत्य नहीं किया। यह POCSO और आईपीसी की धाराओं के अंतर्गत आने वाले अपराधों के पीड़ितों के साथ अन्याय है।
POCSO अधिनियम के तहत अपराध स्पष्ट रूप से सामने आते हैं
अदालत की तीखी टिप्पणी, हमें इस बात पर गंभीर आपत्ति है कि हाईकोर्ट ने यह मान लिया कि POCSO की धारा 7 तभी लागू होती है जब शारीरिक संपर्क के साथ यौन इरादा हो। पीड़ितों को गवाही देने का मौका दिए बिना ही निर्णय दे दिया गया। अदालत ने कहा कि प्रारंभिक पुलिस बयान में पीड़ितों ने जो कहा, उससे POCSO अधिनियम के तहत अपराध स्पष्ट रूप से सामने आते हैं।
आरोपी के प्रभाव का संकेत
अदालत को हैरानी हुई कि आरोपी ने एफआईआर रद्द करवाने के लिए हाईकोर्ट का रुख तब किया जब उसने कथित रूप से एक पीड़िता से समझौता कर लिया था। पुलिस ने सभी पीड़ितों के बयान शुरू में नहीं दर्ज किए, जिससे पीठ को यह संकेत मिला कि आरोपी का प्रभाव था। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को मामले की सुनवाई आगे बढ़ाने का निर्देश। पीड़ितों को ‘संरक्षित गवाह’ का दर्जा दिया जाएगा और उनके बयान प्राथमिकता के आधार पर दर्ज किए जाएंगे। पुलिस को सख्त निर्देश कि आरोपी किसी भी पीड़ित या गवाह से संपर्क न करे और उन्हें प्रभावित न करने पाए। स्कूल प्रशासन को स्वतंत्र रूप से अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुमति दी गई है, जो आपराधिक मामले से अलग होगी।
आरोप क्या हैं
अभियोजन पक्ष का कहना है कि आरोपी शिक्षक ने लड़कियों के साथ अशोभनीय व्यवहार, अनुचित स्पर्श, और ‘सेनेटरी नैपकिन’ जैसे आपत्तिजनक सवाल पूछे। जब छात्राओं ने स्कूल प्रशासन से शिकायत की, तो प्रारंभिक जांच में महिला पत्रिकाएं और कुछ सीडी स्कूल की कंप्यूटर लैब में मिलीं। आरोपी ने पहले माफी मांगकर सुधरने का वादा किया, लेकिन उसका दुर्व्यवहार जारी रहा। बाद में उसने कुछ अश्लील तस्वीरें व्हाट्सएप पर भेजीं, जो कुछ छात्राओं के अभिभावकों के नंबर निकले।
एफआईआर और कानूनी प्रक्रिया
पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया और न्यायिक हस्तक्षेप के बाद POCSO एक्ट की धाराओं 7 (यौन उत्पीड़न) और 8 (सजा) के तहत 5 अलग-अलग एफआईआर दर्ज कीं। एक मामले में आरोपी ने यह कहते हुए एफआईआर रद्द करने की मांग की कि शिकायतकर्ता से समझौता हो गया है। हाईकोर्ट ने POCSO अपराधों को ‘यौन इरादे की पुष्टि’ के बिना मान्य न मानते हुए केस खारिज कर दिया, हालांकि चार्जशीट दायर हो चुकी थी और धारा 164 CrPC के तहत बयान दर्ज थे।
सुप्रीम कोर्ट में पुनरावेदन
हाईकोर्ट के इस फैसले से आहत पीड़ित छात्राओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने केस को पुनः बहाल कर दिया और ट्रायल चलाने का निर्देश दिया है।
खुले अदालत में न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की
यह बेहद विचलित करने वाली बात है कि पीड़ितों में से अधिकांश अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। शायद आरोपी ने यह सोचकर उन्हें निशाना बनाया कि सामाजिक दबाव और रूढ़िवादी माहौल के कारण वे कुछ नहीं कहेंगी।