
NALSA
PIL News: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) ने देश में बुजुर्ग और गंभीर रूप से बीमार सजायाफ्ता कैदियों की रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
पर्याप्त चिकित्सा देखभाल को लेकर जताई गई चिंता
नालसा ने एक प्रेस नोट में कहा, यह याचिका ऐसे कैदियों द्वारा झेली जा रही गंभीर परिस्थितियों को उजागर करती है और संविधान व मानवाधिकारों के तहत करुणामूलक (compassionate) रिहाई की मांग करती है। प्राधिकरण ने कहा कि जेलों में बुजुर्ग और अशक्त कैदियों की संख्या में चिंताजनक वृद्धि हो रही है, जो अक्सर न तो पर्याप्त चिकित्सा देखभाल प्राप्त कर पाते हैं और न ही सम्मानजनक जीवन जीने की सुविधा।
बुजुर्ग और असाध्य बीमारी से ग्रस्त कैदियों की दुर्दशा…
NALSA के अनुसार, ऐसे लोगों की दीर्घकालिक कैद संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, साथ ही यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार सिद्धांतों के भी खिलाफ है। प्राधिकरण ने बताया कि बुजुर्ग और असाध्य बीमारी से ग्रस्त कैदियों की दुर्दशा को ध्यान में रखते हुए एक विशेष अभियान शुरू किया गया है। यह अभियान, NALSA के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति बी. आर. गवई के मार्गदर्शन में, 10 दिसंबर 2024 को मानवाधिकार दिवस के अवसर पर शुरू किया गया।
याचिका में प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2022 का जिक्र किया
नालसा के इस अभियान के मुख्य उद्देश्य हैं: बुजुर्ग और असाध्य रूप से बीमार कैदियों की पहचान करना, उन्हें कानूनी सहायता और न्यायिक हस्तक्षेप के माध्यम से रिहा करवाना शामिल है। NALSA ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह इस विशेष अभियान के तहत पहचाने गए व्यक्तियों की रिहाई के लिए हस्तक्षेप करे, बशर्ते संबंधित ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि प्राप्त हो। NALSA ने अपनी याचिका में प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2022 का हवाला भी दिया है, जिसके अनुसार: कुल सजायाफ्ता कैदियों में से 20.8% (27,690 कैदी) और अंडरट्रायल कैदियों में से 10.4% (44,955 कैदी) की उम्र 50 वर्ष या उससे अधिक है। यह याचिका ऐसे कैदियों के लिए न्याय और मानवीय गरिमा सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।