
PIL News: सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया को चुनौती देने वाली तथा अधिक स्वतंत्र एवं पारदर्शी चयन प्रक्रिया की मांग करने वाली जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया।
केंद्र सरकार की तरफ से डाली जा रही बाधा
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा। सीपीआईएल ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा सीएजी का चयन करने की वर्तमान प्रणाली उनकी स्वतंत्रता में बाधा उत्पन्न करती है। याचिका में न्यायालय से यह निर्देश देने की मांग की गई है कि सीएजी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता (एलओपी) तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश की स्वतंत्र एवं तटस्थ चयन समिति के परामर्श से तथा पारदर्शी तरीके से की जाएगी।
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दायर की याचिका
सीपीआईएल की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क दिया, हाल के दिनों में, सीएजी ने अपनी स्वतंत्रता खो दी है। भूषण ने कहा कि भाजपा शासित राज्यों में ऑडिट में बाधा उत्पन्न हो रही है तथा यह दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम है। जब भूषण ने पीठ से कहा कि नियुक्तियां सरकार द्वारा नियंत्रित होती हैं, तो उनकी स्वतंत्रता बाधित होगी। न्यायमूर्ति कांत ने जवाब दिया, हमें अपनी संस्थाओं पर भी भरोसा करना होगा। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वर्तमान नियुक्ति प्रक्रिया स्वतंत्र, निष्पक्ष या पारदर्शी नहीं है, जिससे CAG की स्वतंत्रता पर संभावित रूप से समझौता हो सकता है। याचिका में यह निर्देश देने की मांग की गई है कि CAG की नियुक्ति केवल कार्यपालिका और प्रधानमंत्री द्वारा करने की वर्तमान प्रथा को संविधान का उल्लंघन घोषित किया जाए।
आरोप: प्रधानमंत्री स्तर पर सीएजी की स्वतंत्रता पर प्रहार
याचिका में कहा गया है, “भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति केवल कार्यपालिका और भारत के प्रधानमंत्री द्वारा करना CAG के कार्यालय की स्वतंत्रता को कमजोर करता है। यह गंभीर हितों के टकराव से ग्रस्त है और इस प्रकार भारत में सुशासन और लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। यह स्पष्ट रूप से मनमाना है, संस्थागत अखंडता के लिए हानिकारक है और संविधान की कई बुनियादी विशेषताओं का उल्लंघन करता है। कहा गया कि CAG की नियुक्ति के लिए निर्देश सूचना आयोगों और केंद्रीय सतर्कता आयोग सहित अन्य निकायों की नियुक्ति के समान होना चाहिए।