
Caste the Vote. File Photo
Panchayat News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पंचायत चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए उनके खिलाफ लंबित मामलों की जानकारी देना अनिवार्य है।
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा गया
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मंडी जिले की पंगना ग्राम पंचायत के प्रधान को हटाए जाने के हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के उक्त फैसले को बरकरार रखा। दरअसल, हाई कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2024 को कहा था कि याचिकाकर्ता द्वारा महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाना हिमाचल प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1994 के प्रावधानों के तहत “भ्रष्ट आचरण” के अंतर्गत आता है और इसके आधार पर उसके चुनाव को शून्य और अमान्य घोषित किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “जहां तक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका का सवाल है, हमें उसमें कोई दम नजर नहीं आता। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि राज्य चुनाव आयोग द्वारा बनाए गए नियमों को हाई कोर्ट ने उचित रूप से अधीनस्थ कानून के रूप में माना है और इस प्रकार पंचायत चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए इन नियमों का पालन करना अनिवार्य था।
छह साल तक चुनाव लड़ने से बसंत लाल को अयोग्य घोषित कर दिया गया था
पीठ ने कहा कि किसी भी स्थिति में याचिकाकर्ता बसंत लाल पर लगाया गया आचरण अधिनियम, नियमों या विनियमों के किसी भी प्रावधान का हवाला दिए बिना भी सिद्ध होता है। यह ऐसा मामला है जहाँ उन्होंने जानबूझकर एक झूठा हलफनामा/प्रतिज्ञापत्र दायर किया और उनके खिलाफ लंबित आपराधिक मामले की जानकारी छिपाई। इस महत्वपूर्ण तथ्य को छिपाना अपने आप में उनके चुनाव को रद्द करने का एक वैध आधार था। लाल ने अदालत के समक्ष यह तर्क दिया कि 2 फरवरी 2025 को, उनके खिलाफ एक आपराधिक मामले के पूर्व में खुलासा न करने के चलते, उन्हें छह साल तक चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता को आपराधिक मामले में बरी कर दिया गया है
पीठ ने यह भी नोट किया कि इसके बाद बसंत लाल को उस आपराधिक मामले में बरी कर दिया गया, जिसकी जानकारी उन्होंने कथित तौर पर छुपाई थी और जिसके कारण उन्हें अयोग्य ठहराया गया था। छह साल की अयोग्यता के मुद्दे पर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि यह सजा कठोर है, क्योंकि संबंधित आपराधिक मामले में अब उन्हें बरी कर दिया गया है। अंत में, 2 फरवरी 2025 के उस आदेश की ओर ध्यान देते हुए, जिसके जरिए याचिकाकर्ता को अगले छह वर्षों तक चुनाव लड़ने से रोका गया है, हम इस आदेश के गुण-दोष पर कोई अंतिम राय व्यक्त नहीं करना चाहते क्योंकि यह एक बाद की घटना है जो हाई कोर्ट में चुनौती का विषय नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता को आपराधिक मामले में बरी कर दिया गया है, इसलिए छह साल तक चुनाव लड़ने से रोकना “प्रथम दृष्टया कठोर और आरोपों की प्रकृति के अनुपात में असंगत सजा प्रतीत होती है।
आदेश के गुण-दोष पर कोई अंतिम राय व्यक्त नहीं की है
पीठ ने कहा, “हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि ये टिप्पणियां केवल इस स्तर पर प्रारंभिक प्रकृति की हैं। यदि याचिकाकर्ता चाहे तो उचित कार्यवाही द्वारा उच्च न्यायालय में उस आदेश को चुनौती दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि चूंकि इस अदालत ने उस आदेश के गुण-दोष पर कोई अंतिम राय व्यक्त नहीं की है, इसलिए इस मामले में उचित दृष्टिकोण अपनाना उच्च न्यायालय के विवेक पर निर्भर करेगा। “फलस्वरूप, याचिकाकर्ता को अपूरणीय कठिनाई से बचाने के दृष्टिकोण से, 2 फरवरी 2025 के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जाती है, ताकि यदि निकट भविष्य में ग्राम पंचायत के प्रधान का चुनाव हो, तो याचिकाकर्ता उसमें भाग ले सके। यह स्थगन आज से आठ सप्ताह तक प्रभावी रहेगा ताकि इस दौरान याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय में उचित कार्यवाही द्वारा राहत प्राप्त करने का प्रयास कर सके,” पीठ ने अपने 17 अप्रैल के आदेश में कहा। बसंत लाल ने उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ द्वारा 7 नवंबर 2024 को पारित उस निर्णय से आहत होकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसमें उनके ग्राम पंचायत के प्रधान पद से अयोग्य ठहराए जाने के निर्णय को बरकरार रखा गया था।
बसंत लाल को 17 जनवरी 2021 को प्रधान घोषित किया था
बसंत लाल को 17 जनवरी 2021 को प्रधान घोषित किया गया था। चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे जितेन्द्र महाजन ने उप-मंडलीय अधिकृत अधिकारी के समक्ष एक चुनाव याचिका दायर कर याचिकाकर्ता के चयन को चुनौती दी थी। महाजन ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि बसंत लाल ने जानबूझकर उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले की जानकारी नहीं दी थी।
उप-मंडलीय मजिस्ट्रेट सह अधिकृत अधिकारी (चुनाव न्यायाधिकरण) ने पाया कि बसंत लाल के खिलाफ एक आपराधिक मामला लंबित था जिसमें दो वर्ष तक की सजा हो सकती थी, और उन्होंने याचिकाकर्ता के चुनाव को शून्य और अमान्य घोषित कर दिया। न्यायाधिकरण के आदेश से आहत होकर बसंत लाल ने उपायुक्त सह अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील दायर की थी, जिसे 1 मई 2023 को खारिज कर दिया गया। इसके बाद, उन्होंने उपायुक्त के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।