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ONLINE BETTING: सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के नाम पर बड़ी संख्या में लोग सट्टेबाजी और जुए में शामिल हो रहे हैं।
हैदराबाद के सामाजिक कार्यकर्ता केए पॉल ने दाखिल की
यह टिप्पणी कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुए से जुड़ी ऐप्स को रेगुलेट करने की मांग की गई है। कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। यह याचिका हैदराबाद के सामाजिक कार्यकर्ता केए पॉल ने दाखिल की है। उन्होंने दावा किया कि ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुए की वजह से कई बच्चों ने आत्महत्या कर ली है। याचिका में कहा गया है कि कई ऑनलाइन इन्फ्लुएंसर, अभिनेता और क्रिकेटर इन ऐप्स का प्रचार कर रहे हैं, जिससे बच्चे इनके झांसे में आ रहे हैं। पॉल ने इन ऐप्स पर पूरी तरह से बैन लगाने, ऑनलाइन गेमिंग और फैंटेसी स्पोर्ट्स पर सख्त नियम बनाने और एक व्यापक कानून लाने की मांग की है।
सट्टेबाजी ऐप्स पर कोई चेतावनी नहीं होती: पॉल
पॉल ने कहा कि जैसे सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी दी जाती है, वैसे ही सट्टेबाजी ऐप्स पर कोई चेतावनी नहीं होती। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ पूर्व भारतीय क्रिकेटर भी इन ऐप्स का प्रचार कर रहे हैं। याचिका में बिना नाम लिए कहा गया कि ‘क्रिकेट के भगवान’ तक ने इन ऐप्स का समर्थन किया है। पॉल ने दावा किया कि वे उन लाखों माता-पिता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जिनके बच्चों ने बीते कुछ सालों में आत्महत्या की है। उन्होंने कहा कि सिर्फ तेलंगाना में 1,023 लोगों ने आत्महत्या की, जिनकी जिंदगी बॉलीवुड और टॉलीवुड के 25 से ज्यादा एक्टर्स और इन्फ्लुएंसर्स ने बर्बाद की।उन्होंने बताया कि तेलंगाना में इन इन्फ्लुएंसर्स के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई है, क्योंकि यह मामला मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
कानून से सब कुछ नहीं रोका जा सकता: कोर्ट
सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा, “आजकल बच्चों के हाथ में इंटरनेट है। वे स्कूल तक मोबाइल लेकर जाते हैं। माता-पिता एक टीवी देखते हैं, बच्चे दूसरा। यह सामाजिक विकृति है। जब लोग खुद ही सट्टेबाजी में शामिल हो रहे हैं, तो कानून क्या कर सकता है? हम सैद्धांतिक रूप से आपके साथ हैं कि इसे रोका जाना चाहिए, लेकिन शायद आप गलतफहमी में हैं कि इसे कानून से रोका जा सकता है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, जैसे हम हत्या को पूरी तरह नहीं रोक सकते, वैसे ही सट्टेबाजी और जुए को भी कानून से पूरी तरह नहीं रोका जा सकता।
केंद्र से मांगा जवाब, सभी राज्यों से भी ले सकते हैं राय
कोर्ट ने कहा कि वह केंद्र सरकार से पूछेगा कि वह इस मुद्दे पर क्या कर रही है। इसके लिए अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल की मदद भी मांगी गई है। कोर्ट ने कहा कि जरूरत पड़ी तो सभी राज्यों से भी जवाब मांगा जाएगा।
युवाओं को बचाने के लिए दाखिल की याचिका
पॉल ने अपनी याचिका में कहा कि उन्होंने यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल की है ताकि भारत के युवाओं और कमजोर वर्गों को ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुए के खतरों से बचाया जा सके, जो फैंटेसी स्पोर्ट्स और स्किल-बेस्ड गेमिंग के नाम पर चल रहे हैं।
क्या ऑनलाइन फैंटेसी गेमिंग भी जुआ है?
याचिका में यह सवाल उठाया गया है कि क्या ऑनलाइन सट्टेबाजी और फैंटेसी स्पोर्ट्स, जिनमें पैसे का लेन-देन और अनिश्चित नतीजे होते हैं, पब्लिक गैंबलिंग एक्ट, 1867 और राज्यों के जुआ विरोधी कानूनों के तहत जुआ माने जाएंगे?
पैसे की हेराफेरी और हवाला का जरिया बन रहे ऐप्स
पॉल ने दावा किया कि ये ऐप्स मनी लॉन्ड्रिंग, हवाला और विदेशी संस्थाओं से जुड़े अवैध वित्तीय लेन-देन का जरिया बन चुके हैं, जो प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA), 2002 का उल्लंघन है।
हजारों परिवारों को हुआ आर्थिक नुकसान
याचिका में कहा गया है कि देशभर में हजारों परिवारों को इन ऐप्स की वजह से आर्थिक नुकसान हुआ है। हैदराबाद, विशाखापट्टनम और बेंगलुरु की ईडी और साइबर क्राइम रिपोर्ट्स में बताया गया है कि अवैध सट्टेबाजी सिंडिकेट के चलते कई आत्महत्याएं हुई हैं।