
Supreme Court View
Appeal Case: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट किसी भी आपराधिक मामले में तब तक सजा नहीं बढ़ा सकता या किसी नई धारा में दोषी नहीं ठहरा सकता, जब तक पीड़ित, शिकायतकर्ता या राज्य सरकार की ओर से अपील दाखिल न की गई हो।
मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच के उस फैसले को चुनौती दी थी
यह फैसला जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सुनाया। यह मामला नागराजन नाम के व्यक्ति की अपील से जुड़ा था, जिसने मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उसे आत्महत्या के लिए उकसाने (IPC की धारा 306) का दोषी ठहराते हुए 5 साल की सजा सुनाई गई थी। कोर्ट ने साफ किया कि सिर्फ आरोपी की ओर से दायर अपील के आधार पर हाईकोर्ट अपने स्तर पर (सुओ मोटो) सजा नहीं बढ़ा सकता।
ट्रायल कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने से किया था बरी
सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि ट्रायल कोर्ट ने नागराजन को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से बरी कर दिया था। उसे केवल महिला की अस्मिता भंग करने (धारा 354) और घर में जबरन घुसने (धारा 448) का दोषी माना गया था। इसके खिलाफ नागराजन ने हाईकोर्ट में अपील की थी। हाईकोर्ट ने अपील पर सुनवाई करते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, लेकिन साथ ही खुद से (सुओ मोटो) कार्रवाई करते हुए उसे धारा 306 के तहत भी दोषी ठहरा दिया और सजा बढ़ा दी। जबकि इस मामले में न तो राज्य सरकार, न पीड़ित और न ही शिकायतकर्ता ने कोई अपील की थी।
कोर्ट ने कहा- आरोपी की अपील पर उसे नुकसान नहीं हो सकता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अगर सिर्फ आरोपी की ओर से अपील दायर की गई है और पीड़ित, शिकायतकर्ता या राज्य की ओर से कोई अपील नहीं है, तो हाईकोर्ट न तो सजा बढ़ा सकता है और न ही किसी नई धारा में दोषी ठहरा सकता है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी आरोपी को अपनी अपील के कारण पहले से ज्यादा सजा नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा धारा 306 के तहत दी गई सजा को रद्द कर दिया, लेकिन धारा 354 और 448 के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि आरोपी को सेशंस कोर्ट द्वारा दी गई सजा भुगतनी होगी और जुर्माना भी भरना होगा।
यह था मामला
नागराजन पर आरोप था कि उसने 11 जुलाई 2003 को अपनी पड़ोसी महिला के घर में जबरन घुसकर उसकी अस्मिता भंग की। अगले दिन महिला ने अपने नवजात बच्चे के साथ आत्महत्या कर ली थी। ट्रायल कोर्ट ने उसे आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से बरी कर दिया था, लेकिन अन्य दो आरोपों में दोषी ठहराया था। हाईकोर्ट ने उसकी अपील पर सुनवाई करते हुए खुद से सजा बढ़ा दी थी, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने गलत ठहराया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सजा तय करते समय ट्रायल कोर्ट को भी सावधानी बरतनी चाहिए
फैसले में कोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट को सजा सुनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वह आरोपों और दोषसिद्धि के अनुरूप हो। कोर्ट ने साफ किया कि सजा बढ़ाने का अधिकार केवल तभी है जब राज्य, पीड़ित या शिकायतकर्ता की ओर से अपील हो और आरोपी को अपनी बात रखने का पूरा मौका मिले।