
Supreme Court View
NARCO ANALYSIS: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किसी भी आरोपी पर जबरन नार्को-एनालिसिस टेस्ट कराना कानूनन मंजूर नहीं है।
टेस्ट आरोपी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है
कोर्ट ने कहा कि ऐसा टेस्ट आरोपी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जो संविधान के अनुच्छेद 20(3) और 21 के तहत सुरक्षित हैं। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस पीबी वराले की बेंच ने कहा कि आधुनिक जांच तकनीकों की जरूरत हो सकती है, लेकिन इन्हें संविधान में दिए गए अधिकारों की कीमत पर लागू नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने साफ किया कि जबरन कराया गया नार्को टेस्ट और उससे मिली जानकारी को किसी भी आपराधिक या अन्य कानूनी कार्यवाही में सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता।
स्वेच्छा से टेस्ट कराने का अधिकार
कोर्ट ने कहा कि आरोपी को स्वेच्छा से नार्को टेस्ट कराने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार भी सीमित है। यह टेस्ट तभी कराया जा सकता है जब आरोपी ट्रायल के दौरान अपने पक्ष में सबूत पेश करने का अधिकार इस्तेमाल कर रहा हो। हालांकि, यह कोई अटल अधिकार नहीं है। अगर आरोपी ऐसा आवेदन देता है, तो संबंधित कोर्ट को पूरे मामले की परिस्थितियों को देखते हुए फैसला लेना होगा। इसमें आरोपी की स्वतंत्र सहमति और जरूरी सुरक्षा उपायों का ध्यान रखना जरूरी है।
पटना हाईकोर्ट का आदेश रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला उस मामले में सुनाया, जिसमें पटना हाईकोर्ट ने आरोपी की सहमति के बिना नार्को टेस्ट की इजाजत दे दी थी। यह मामला दहेज हत्या के आरोप से जुड़ा था, जिसमें पति और उसके परिवार पर आरोप लगे थे। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस आदेश को गलत ठहराते हुए रद्द कर दिया।