
Bombay High court
MH-HC: बॉम्बे हाईकोर्ट ने पालघर जिले में एक अवैध निर्माण को गिराने का आदेश देते हुए राज्य सरकार की दोहरी नीति पर कड़ी टिप्पणी की है।
कानून का उल्लंघन करने वालों को बढ़ावा मिलता है: कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि एक तरफ राज्य अवैध निर्माण पर कार्रवाई नहीं करता, दूसरी तरफ ऐसे बिल्डरों और डेवलपर्स को सुरक्षा देता है। यह रवैया अस्वीकार्य है। जस्टिस ए.एस. गडकरी और कमल खाटा की बेंच ने 17 जून को दिए फैसले में कहा कि स्थानीय निकाय और अधिकारी अक्सर नोटिस जारी करने के बाद भी जरूरी कार्रवाई जैसे तोड़फोड़ और दोषियों पर मुकदमा नहीं करते। इससे कानून का उल्लंघन करने वालों को बढ़ावा मिलता है और समाज में असंतोष फैलता है।
दोषियों को परोक्ष रूप से सुरक्षा देना स्वीकार नहीं
कोर्ट ने कहा कि अवैध निर्माण करने वाले बिल्डरों और डेवलपर्स से पैसे की वसूली एक दूर का सपना है, जिसमें दशकों लग जाते हैं। ऐसे मामलों में शामिल नगर निकाय के अधिकारी और पुलिसकर्मी अब तक किसी भी जवाबदेही या सजा से बचते रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने अब तक इस समस्या को रोकने के लिए कोई प्रभावी उपाय नहीं किया है। मुंबई जैसे शहरों में अवैध निर्माण की संख्या बहुत अधिक है और दोषियों को परोक्ष रूप से सुरक्षा देना स्वीकार नहीं किया जा सकता।
पालघर में तीन लोगों ने किया अवैध निर्माण
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर पालघर में तीन लोगों द्वारा किए गए अवैध निर्माण को गिराने की मांग की थी। याचिका में कहा गया कि नगर निकाय ने तोड़फोड़ का नोटिस तो जारी किया, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद अवैध निर्माण करने वालों ने निर्माण को नियमित करने के लिए आवेदन दे दिया। कोर्ट ने कहा कि यह आम चलन बन गया है कि पहले बिना अनुमति निर्माण कर लिया जाता है और फिर उसे वैध कराने की कोशिश की जाती है।
खुलेआम किए गए अवैध निर्माण को नियमित नहीं करें
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह के खुलेआम किए गए अवैध निर्माण को नियमित नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही वसई-विरार नगर निगम को अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने का निर्देश दिया। साथ ही नगर निगम आयुक्त को आदेश दिया गया कि वे इस मामले में कार्रवाई नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ भी उचित कदम उठाएं, ताकि उन्हें कानून का सम्मान करना सिखाया जा सके।