
LAND FOR JOBS-1: रेलवे में नौकरी के बदले जमीन घोटाले में चार्ज तय करने की बहस के दौरान CBI ने कोर्ट में सवाल उठाया।
एक लाख वर्गफीट जमीन सिर्फ 26 लाख रुपए में खरीदी गई
सीबीआई ने सवाल किया कि रेलवे के कुछ जोन में ग्रुप-डी की भर्तियों के लिए सभी उम्मीदवार एक ही राज्य से कैसे हो सकते हैं? इस मामले में पूर्व रेल मंत्री और RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव, उनके परिवार के सदस्य, पूर्व सरकारी अफसर और नौकरी के इच्छुक लोग आरोपी हैं। CBI ने आरोप लगाया कि लालू यादव ने उम्मीदवारों या उनके रिश्तेदारों से जमीन लेकर उन्हें रेलवे में नौकरी दी। ये जमीनें या तो गिफ्ट के तौर पर ली गईं या बहुत कम कीमत पर खरीदी गईं। एजेंसी ने बताया कि एक लाख वर्गफीट जमीन सिर्फ 26 लाख रुपए में खरीदी गई।
एप्लिकेशन मंजूर करने के लिए भारी दबाव था
CBI की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट और स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर डीपी सिंह ने स्पेशल जज विशाल गोगने के सामने दलीलें रखीं। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई बुधवार के लिए तय की है। CBI ने कोर्ट में कहा कि एप्लिकेशन मंजूर करने के लिए भारी दबाव था। कई एप्लिकेशन एक ही दिन में मंजूर कर दी गईं। SPP ने सवाल किया कि इतनी जल्दी कैसे मंजूरी दी गई, जबकि प्रक्रिया काफी जटिल थी। उन्होंने कहा कि उम्मीदवारों के सर्टिफिकेट्स की कभी जांच ही नहीं हुई। एजेंसी ने यह भी कहा कि उनके पास ऐसे सबूत हैं जो दिखाते हैं कि जिन लोगों की जमीन लालू यादव को सीधे या परोक्ष रूप से कम कीमत पर बेची गई, उन्हें ही नौकरी दी गई।
दिल्ली हाईकोर्ट ने लालू यादव की याचिका खारिज की
31 मई को दिल्ली हाईकोर्ट ने लालू यादव की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी। जस्टिस रविंदर डूडेजा ने कहा कि चार्ज तय करने की प्रक्रिया के दौरान यादव अपनी दलीलें ट्रायल कोर्ट में रख सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि कार्यवाही रोकने के लिए कोई ठोस कारण नहीं है। लालू यादव की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि CBI ने जांच शुरू करने से पहले जरूरी मंजूरी नहीं ली। उन्होंने कहा कि बाकी आरोपियों के लिए मंजूरी ली गई, लेकिन यादव के मामले में नहीं। CBI ने इसका विरोध करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 17A के तहत मंजूरी जरूरी नहीं थी। वहीं, धारा 19 के तहत जो मंजूरी जरूरी थी, वह पहले ही ली जा चुकी है। CBI और ED दोनों एजेंसियां इस मामले में लालू यादव, उनके परिवार और अन्य लोगों की जांच कर रही हैं।
ग्रुप डी पदों के आवेदन मंजूरी में धांधली
रेलवे में नौकरी के बदले जमीन देने के कथित घोटाले में सीबीआई ने दिल्ली की एक अदालत में दावा किया है कि जब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे, तब मंत्रालय ने ग्रुप-डी पदों के लिए आए आवेदनों को मंजूरी दिलाने के लिए जरूरत से ज्यादा दबाव बनाया। ये वे उम्मीदवार थे, जिन्होंने या तो खुद या अपने रिश्तेदारों के जरिए लालू यादव के परिवार या उनके करीबियों के नाम पर जमीन ट्रांसफर की थी।
2004 से 2009 के बीच पश्चिम मध्य रेलवे, जबलपुर (मध्यप्रदेश) में हुई भर्तियां
सीबीआई के मुताबिक, ये भर्तियां 2004 से 2009 के बीच पश्चिम मध्य रेलवे, जबलपुर (मध्यप्रदेश) में हुई थीं। सोमवार को विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने की अदालत में इस मामले में आरोप तय करने को लेकर सुनवाई हुई। इस दौरान विशेष लोक अभियोजक डीपी सिंह ने कहा कि सभी उम्मीदवार बिहार से थे और अधिकतर गरीब परिवारों से आते थे, जिनके लिए सरकारी नौकरी पाना बड़ी बात थी।
तेजी से मंजूर हुए आवेदन
सीबीआई ने बताया कि एक ही दिन में कई आवेदनों को मंजूरी दी गई, जबकि सामान्य प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल होती है। अभियोजक ने कहा, “इतनी जल्दी कैसे मंजूरी मिल गई? हमारे पास ऐसे गवाह हैं जिन्होंने बताया कि मंत्रालय से भारी दबाव था। ज्यादातर प्रमाणपत्र फर्जी थे और उनकी कोई जांच नहीं हुई। किसी भी पद पर नियुक्ति के लिए कोई आपात स्थिति या कारण नहीं बताया गया। इतने सारे आवेदनों को एक साथ कैसे मंजूरी दी गई?”