
close up photo of a stethoscope
Katara Case: सुप्रीम कोर्ट ने नितीश कटारा हत्याकांड में दोषी विकास यादव के परिजन की चिकित्सकीय स्थिति का आकलन करने के लिए गठित एम्स मेडिकल बोर्ड के लापरवाह रवैये पर कड़ी नाराज़गी जताई।
एम्स की रिपोर्ट सतही तरीके से पेश की गई
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की पीठ ने कहा कि एम्स की रिपोर्ट सतही तरीके से पेश की गई है और इसमें यह भी नहीं बताया गया कि यादव की मां को सर्जरी की आवश्यकता है या नहीं। पीठ ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, कोई भी अपना काम नहीं कर रहा है। ये बहुत ही लापरवाह रवैया है। कोई मेडिकल बोर्ड काम करने को तैयार नहीं है। एम्स की मेडिकल रिपोर्ट बेहद सतही है। मेडिकल बोर्ड डाकिए की तरह बर्ताव नहीं कर सकते। वे बस वहाँ जाकर डॉक्टर की कही बात बता देते हैं। हमें हैरानी है कि मेडिकल बोर्ड काम करने को तैयार ही नहीं है।
यूपी व दिल्ली सरकार को लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने आगे निर्देश दिया, यशोदा अस्पताल के डॉक्टर विपिन त्यागी मंगलवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित रहें और हमें अपीलकर्ता की मां की मेडिकल स्थिति की जानकारी दें। इससे पहले अदालत ने यूपी और दिल्ली सरकारों को भी फटकार लगाई थी कि उन्होंने मेडिकल बोर्ड गठित करने में देरी की। कोर्ट ने आश्चर्य जताया कि 2 अप्रैल के आदेश के बावजूद मां की हालत की जांच के लिए बोर्ड बनाने में 10 दिन लग गए, जबकि वह गाज़ियाबाद के यशोदा अस्पताल में आईसीयू में भर्ती हैं।
यादव की मां उमेश यादव की हालत गंभीर..याचिका दायर
याचिका में कहा गया कि यादव की मां उमेश यादव की हालत गंभीर है और डॉक्टरों ने तुरंत सर्जरी की सिफारिश की है। गौरतलब है कि 3 अक्टूबर, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने यादव को किसी भी प्रकार की रिहाई या छूट का लाभ दिए बिना सजा सुनाई थी। विकास यादव, उत्तर प्रदेश के राजनीतिज्ञ डी. पी. यादव का बेटा है। इस मामले में उसका चचेरा भाई विशाल यादव भी दोषी पाया गया था। दोनों ने व्यवसायी नितीश कटारा की हत्या की थी क्योंकि वह विकास की बहन भारती यादव से प्रेम संबंध में था, जो अलग जाति से थे। तीसरे सह-आरोपी सुखदेव पहलवान को भी 20 साल की सजा सुनाई गई थी, जिसमें कोई रिहाई की छूट नहीं थी।
दिल्ली हाईकोर्ट से उम्रकैद की सजा बरकरार…
दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए विकास और विशाल यादव को बिना किसी छूट के 30 साल की सजा सुनाई थी। वहीं सुखदेव पहलवान को 25 साल की सजा दी गई थी। दिल्ली जेल प्रशासन ने पिछले साल यादव की रिहाई (remission) की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि जेल में उसका व्यवहार असंतोषजनक पाया गया।