
Supreme court
JUDICIAL INTERVENTION: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि झूठे और परेशान करने वाले मुकदमों को खत्म करने के लिए न्यायिक दखल बेहद जरूरी है।
किसी आरोपी को समन भेजना एक गंभीर मामला है: कोर्ट
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने कहा कि किसी आरोपी को समन भेजना एक गंभीर मामला है, जो व्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा को प्रभावित करता है। कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट के पास यह अधिकार है कि वह ऐसे मामलों को खत्म कर सके, जो पूरी तरह से झूठे और दुर्भावनापूर्ण हों। कोर्ट ने दो लोगों के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्रवाई को खारिज करते हुए कहा कि ऐसे मामलों से लोगों को अनावश्यक पीड़ा और उत्पीड़न झेलना पड़ता है।
यह था मामला
यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के जुलाई 2015 के उस आदेश से जुड़ा है, जिसमें कुछ लोगों के खिलाफ आपराधिक केस को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था। इन पर आरोप था कि इन्होंने एक सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्य निभाने से रोका। इनमें से एक अपीलकर्ता एक संस्था में प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर थे, जो उत्तर प्रदेश में मानव तस्करी और बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ काम कर रही थी।
वाराणसी के एक ईंट भट्ठे पर छापा मारा था
जून 2014 में एक टीम ने वाराणसी के एक ईंट भट्ठे पर छापा मारा था, जहां बंधुआ बाल मजदूरी की शिकायत मिली थी। अपीलकर्ताओं का दावा था कि उन्होंने वहां से बच्चों और मजदूरों को छुड़ाया और पुलिस स्टेशन ले गए, लेकिन भट्ठा मालिक ने हस्तक्षेप कर उन्हें वापस ले गया। बाद में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई कि अपीलकर्ताओं ने जबरन मजदूरों और बच्चों को डंपर में भरकर ले गए।
हाईकोर्ट ने नहीं सुनी अपीलकर्ताओं की दलील
चार्जशीट दाखिल होने और मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने के बाद अपीलकर्ता हाईकोर्ट पहुंचे थे, लेकिन हाईकोर्ट ने केस खारिज करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने न तो केस के तथ्यों पर ध्यान दिया और न ही अपीलकर्ताओं की दलीलों पर। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को यह देखना चाहिए था कि एफआईआर या चार्जशीट में जो आरोप लगाए गए हैं, वे किसी अपराध को दर्शाते हैं या नहीं। साथ ही यह भी देखना चाहिए था कि क्या केस पूरी तरह से झूठा और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
चार्जशीट में बल प्रयोग या धमकी का कोई जिक्र नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट में ऐसा कोई आरोप नहीं है जिससे लगे कि अपीलकर्ताओं ने किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ बल प्रयोग किया या धमकी दी। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त श्रम आयुक्त की उस रिपोर्ट का भी जिक्र किया, जो उन्होंने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को दी थी।
कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए केस को खारिज कर दिया
रिपोर्ट में कहा गया था कि अपीलकर्ताओं ने मजदूरों को झूठा बयान देने के लिए रिश्वत दी। कोर्ट ने कहा कि यह आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद हैं और जांच के दौरान दर्ज बयानों से इसकी पुष्टि नहीं होती। कोर्ट ने कहा कि विभाग का यह शत्रुतापूर्ण रवैया यह साबित करता है कि यह केस दुर्भावना और निजी बदले की भावना से दर्ज किया गया था। इसी आधार पर कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए केस को खारिज कर दिया।