
Brunt Note near Justice Verma's Residence.. Courtesy Agency
Judge’s Row 13: सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ कैश मिलने के मामले में बनी जांच समिति की रिपोर्ट को सूचना के अधिकार (RTI) के तहत देने से इनकार कर दिया है।
सूचना देना संसद के विशेषाधिकार का उल्लंघन हो सकता है
RTI अर्जी में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजी गई चिट्ठी की कॉपी भी मांगी गई थी। प्रशासन ने RTI अर्जी खारिज करते हुए कहा कि यह जानकारी गोपनीय है और इसे सार्वजनिक करना संसद के विशेषाधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
CJI ने रिपोर्ट के साथ राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को लिखा था पत्र
इस महीने की शुरुआत में तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट भेजी थी। इसके साथ ही उन्होंने जस्टिस वर्मा का जवाब भी संलग्न किया था। सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई को एक बयान में कहा था कि इन-हाउस प्रक्रिया के तहत CJI ने 3 मई की रिपोर्ट और 6 मई को मिले जवाब को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा है।
तीन जजों की समिति ने लगाए थे आरोप
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति ने अपनी जांच में जस्टिस वर्मा के खिलाफ नकदी मिलने के आरोपों की पुष्टि की थी। समिति में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थीं। रिपोर्ट 3 मई को फाइनल हुई थी।
50 से ज्यादा लोगों के बयान लिए गए
सूत्रों के मुताबिक, समिति ने सबूतों का विश्लेषण किया और 50 से ज्यादा लोगों के बयान दर्ज किए। इनमें दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा और दिल्ली फायर सर्विस के प्रमुख भी शामिल थे, जो 14 मार्च की रात 11:35 बजे जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर आग लगने की घटना के बाद सबसे पहले मौके पर पहुंचे थे।
जस्टिस वर्मा ने आरोपों से किया इनकार
जांच के दौरान जस्टिस वर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट की समिति को दिए अपने जवाब में सभी आरोपों से इनकार किया था। यह विवाद एक मीडिया रिपोर्ट के बाद सामने आया था, जिसमें उनके आवास से नकदी मिलने का दावा किया गया था।
दिल्ली से इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर
मामले के सामने आने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने प्रारंभिक जांच की थी। इसके बाद जस्टिस वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया और उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया, जहां उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया। 24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनकी मूल अदालत इलाहाबाद हाईकोर्ट में वापसी की सिफारिश की थी। 28 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से कहा कि फिलहाल जस्टिस वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए।