
Supreme Court
Waqf-2: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की कुछ प्रमुख धाराओं पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखा है। इनमें वे प्रावधान शामिल हैं जो न्यायालय द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को डिनोटिफाई करने की शक्ति और केंद्रीय वक्फ परिषदों व बोर्डों में गैर-मुसलमानों को शामिल करने से संबंधित हैं।
चुनौती देने वाली 72 याचिकाओं के संबंध पर सुनवाई
यह सुनवाई वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली 72 याचिकाओं के संबंध में हुई, जिसे मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने सुना। केंद्र सरकार ने इस अंतरिम आदेश का विरोध करते हुए विस्तृत सुनवाई की मांग की थी। सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी। पीठ ने केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर असहमति जताई और केंद्र से पूछा, क्या आप हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों को शामिल करने के लिए तैयार हैं? गौरतलब है कि केंद्र ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अधिसूचित कर दिया है और इसे 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल गई थी।
न्यायालय की टिप्पणियां और प्रस्ताव
CJI खन्ना ने कहा कि कुछ प्रावधानों के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं, खासकर वे जो न्यायिक रूप से मान्यता प्राप्त वक्फ संपत्तियों को कमजोर कर सकते हैं। उन्होंने प्रस्ताव दिया कि न्यायालय द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को (चाहे वह वक्फ-बाय-यूज़र हो या वक्फ-बाय-डीड) तब तक डिनोटिफाई नहीं किया जाना चाहिए, जब तक अदालत इस कानून की वैधता की सुनवाई कर रही है। न्यायालय ने उस प्रावधान पर भी रोक का संकेत दिया जिसमें कहा गया है कि कलेक्टर की जांच के दौरान वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा। CJI ने कहा, वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद के सभी सदस्य मुसलमान होने चाहिए, सिवाय पदेन (ex-officio) सदस्यों के।
पीठ ने कई प्रावधानों पर आपत्ति जताई, विशेष रूप से ये रहीं
- वक्फ संपत्तियों से संबंधित विवादों का निर्णय जिलाधिकारियों को सौंपना।
- न्यायालय द्वारा घोषित वक्फ संपत्तियों को डिनोटिफाई करने की अनुमति देना।
- आमतौर पर अदालतें प्रारंभिक स्तर पर कानून में हस्तक्षेप नहीं करतीं, लेकिन यह मामला अपवाद हो सकता है। अगर कोई संपत्ति ‘वक्फ-बाय-यूज़र’ के रूप में घोषित है और उसे डिनोटिफाई कर दिया गया, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।
कोर्ट और सॉलिसिटर जनरल के बीच तीखी बहस
- जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने की बात की, तो न्यायालय ने पूछा, क्या अब मुसलमानों को भी हिंदू धार्मिक बोर्डों में शामिल किया जाएगा? कृपया इसे स्पष्ट रूप से कहें।
- मेहता ने कहा कि दो से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे और वह इसे हलफनामे में प्रस्तुत कर सकते हैं। लेकिन पीठ ने जवाब दिया, अगर 22 में से केवल 8 सदस्य मुसलमान होंगे और बाकी में दो जज भी हो सकते हैं जो मुसलमान न हों, तो फिर गैर-मुसलमानों का बहुमत कैसे धार्मिक संस्था की प्रकृति के अनुरूप होगा?
- जब मेहता ने अदालत की तटस्थता पर सवाल उठाने जैसा संकेत दिया, तो पीठ ने कड़ी प्रतिक्रिया दी, जब हम यहां बैठते हैं, तो अपनी व्यक्तिगत पहचान छोड़ देते हैं। हमारे लिए सभी पक्ष कानून के समक्ष समान हैं। इस तुलना का कोई औचित्य नहीं है।
- पीठ ने पूछा, तो क्या फिर हिंदू मंदिरों की सलाहकार समितियों में गैर-हिंदुओं को भी शामिल किया जाएगा?
- मेहता ने कहा कि कई मुसलमान वक्फ अधिनियम के तहत नहीं आना चाहते। इस पर पीठ ने पूछा, क्या आप कह रहे हैं कि अब मुसलमानों को हिंदू धार्मिक बोर्डों का हिस्सा बनने देंगे? कृपया इसे स्पष्ट करें।
- पीठ ने कहा कि 100 या 200 साल पहले वक्फ घोषित सार्वजनिक ट्रस्टों को अब वक्फ बोर्ड द्वारा अचानक निरस्त नहीं किया जा सकता। आप **अतीत को दोबारा नहीं लिख सकते।
- मेहता ने कहा कि संयुक्त संसदीय समिति की 38 बैठकें हुईं और 98.2 लाख ज्ञापन पर विचार किया गया, जिसके बाद संसद के दोनों सदनों ने यह कानून पारित किया।
वक्फ-बाय-यूज़र’ और इसके वैध दस्तावेज
- पीठ ने पूछा, वक्फ-बाय-यूजर’ को आप कैसे पंजीकृत करेंगे? उनके पास कौन से दस्तावेज़ होंगे? यह वैध और पुरानी परंपरा है। मैंने प्रिवी काउंसिल के निर्णय भी देखे हैं। यह एक मान्यता प्राप्त प्रणाली है। इसे उलटना मुश्किल होगा।
- वक्फ-बाय-यूज़र’ वह प्रणाली है जिसमें लंबे समय तक लगातार धार्मिक या धर्मार्थ उपयोग के आधार पर कोई संपत्ति वक्फ मानी जाती है, भले ही उसके लिए कोई औपचारिक घोषणा न हो।
- संशोधित अधिनियम कहता है: यदि कोई वक्फ-बाय-यूज़र संपत्ति अधिनियम के लागू होने से पहले पंजीकृत है, तो वह वक्फ मानी जाएगी, जब तक वह संपत्ति विवादित न हो या सरकारी संपत्ति न हो।
सीजेआई की 16 अप्रैल को सुनवाई के दौरान अंतिम टिप्पणी
- CJI खन्ना ने पूछा कि क्या उच्च न्यायालय भी इस मामले की सुनवाई कर सकता है और पक्षों से उनके मुख्य निवेदन जानना चाहा।
- वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह मामला संपूर्ण भारत को प्रभावित करता है, इसलिए इसे उच्च न्यायालय नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट को ही सुनना चाहिए।