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SC News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यदि किसी पुलिस थाने के स्थायी थानाध्यक्ष (SHO) अनुपस्थित हों, तो प्रभारी थानाध्यक्ष (In-Charge SHO) भी एनडीपीएस अधिनियम, 1985 (NDPS Act) के तहत कानूनी रूप से तलाशी कर सकते हैं।
राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर
यह निर्णय न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील की सुनवाई के दौरान सुनाया। यह मामला NDPS अधिनियम की धारा 8/18, 25 और 29 के तहत दर्ज एक प्राथमिकी (FIR) से जुड़ा था। राजस्थान हाईकोर्ट ने पहले FIR को रद्द कर दिया था, यह कहते हुए कि तलाशी एक अधिकृत अधिकारी द्वारा नहीं की गई थी। हाईकोर्ट का मानना था कि केवल आधिकारिक रूप से नियुक्त SHO ही ऐसी तलाशी करने के लिए सक्षम होते हैं और प्रभारी SHO को यह अधिकार प्राप्त नहीं है।
NDPS अधिनियम की धारा 42 के तहत अधिसूचना जारी
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि NDPS अधिनियम की धारा 42 के तहत जारी एक अधिसूचना के अनुसार, सभी पुलिस निरीक्षक (Inspectors) और उप-निरीक्षक (Sub-Inspectors), जिन्हें SHO के रूप में तैनात किया गया है, वे इस धारा के अंतर्गत आने वाले सभी अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं। धारा 42 अधिकारियों को बिना वारंट तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी की शक्ति प्रदान करती है। इस मामले में, नामित SHO वीरा राम चौधरी 9 सितंबर 2011 को अनुपस्थित थे, और उन्होंने अपना कार्यभार वृत्त निरीक्षक (सर्कल इंस्पेक्टर)/उप-निरीक्षक कमल चंद को सौंप दिया था, जिन्होंने बाद में तलाशी अभियान को अंजाम दिया। इसके बावजूद, राजस्थान हाईकोर्ट ने तलाशी को अमान्य ठहराया क्योंकि वह तलाशी नामित SHO द्वारा नहीं की गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पूर्व निर्णय — State of Rajasthan बनाम भेरू लाल — का हवाला देते हुए कहा कि प्रभारी SHO, जो अस्थायी रूप से कार्यभार संभाले हुए होता है, कानूनन तलाशी करने के लिए अधिकृत होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा
हमारा मत है कि उच्च न्यायालय ने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 42 की व्याख्या करने में स्पष्ट रूप से त्रुटि की है और यह मानने में भी गलती की है कि प्रभारी SHO तलाशी लेने के लिए सक्षम नहीं था।