
Gujrat High Court
Godhra Case: गुजरात हाईकोर्ट ने 2002 के गोधरा कांड के दिन साबरमती एक्सप्रेस में ड्यूटी पर तैनात 9 रेलवे पुलिसकर्मियों की बर्खास्तगी को सही ठहराया है।
शांति एक्सप्रेस से कर्मी अहमदाबाद लौट आए
न्यायमूर्ति वैभवी नानावटी ने कहा, अगर ये पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी पर होते, तो गोधरा स्टेशन के पास ट्रेन जलाने की घटना को रोका जा सकता था। 24 अप्रैल को दिए आदेश में कहा कि इन पुलिसकर्मियों ने ड्यूटी में लापरवाही बरती और फर्जी एंट्री की। वे साबरमती एक्सप्रेस में ड्यूटी करने की बजाय शांति एक्सप्रेस से अहमदाबाद लौट आए।
यह हुआ था 27 फरवरी 2002 को
आरोपी पुलिसकर्मियों को 27 फरवरी 2002 को दाहोद स्टेशन से साबरमती एक्सप्रेस में सवार होकर अहमदाबाद तक गश्त करनी थी। लेकिन ट्रेन के लेट होने की जानकारी मिलने पर वे शांति एक्सप्रेस से लौट आए। उसी दिन सुबह करीब 7:40 बजे गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के S-6 कोच में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 यात्रियों की मौत हो गई थी। इनमें ज्यादातर अयोध्या से लौट रहे कारसेवक थे।
फर्जी एंट्री कर दी गलत जानकारी
कोर्ट के मुताबिक, इन पुलिसकर्मियों ने दाहोद स्टेशन पर रजिस्टर में फर्जी एंट्री की कि वे साबरमती एक्सप्रेस से रवाना हो रहे हैं। इससे कंट्रोल रूम को गलत जानकारी मिली कि ट्रेन में सुरक्षा व्यवस्था है। घटना की जांच के बाद गुजरात सरकार ने 2005 में इन नौ पुलिसकर्मियों को ड्यूटी में लापरवाही के चलते बर्खास्त कर दिया था। इनमें तीन हथियारबंद और छह बिना हथियार वाले पुलिसकर्मी थे। सभी GRP की मोबाइल स्क्वॉड टीम का हिस्सा थे।
पुलिसकर्मियों की दलील खारिज
बर्खास्त पुलिसकर्मियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बर्खास्तगी रद्द करने और सेवा में बहाल करने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि जब कोई ट्रेन अनिश्चितकाल तक लेट हो, तो दूसरी ट्रेन से लौटना सामान्य प्रक्रिया है। हालांकि कोर्ट ने यह दलील खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि ये ट्रेन A कैटेगरी की थी, जिसमें अपराध की संभावना ज्यादा होती है। ऐसे में इसमें कम से कम तीन हथियारबंद और बाकी पुलिसकर्मियों को डंडे और रस्सी के साथ तैनात रहना जरूरी था।
कोर्ट ने कहा- ड्यूटी को गंभीरता से नहीं लिया
कोर्ट ने कहा कि इन पुलिसकर्मियों ने इतनी महत्वपूर्ण ड्यूटी को गंभीरता से नहीं लिया और बिना अनुमति के दूसरी ट्रेन से लौट आए। ऐसे में सरकार द्वारा की गई कार्रवाई में कोई दखल देने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत विशेष अधिकार का प्रयोग करने से इनकार करते हुए दोनों याचिकाएं खारिज कर दीं।