
Courtroom scene inside the Delhi High Court. AI IMAGE
HC News: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि शादीशुदा जिंदगी या परिवार में केवल झगड़े होना आत्महत्या के लिए उकसाने का आधार नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने आत्महत्या के एक मामले में महिला और उसके बेटे को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत देते हुए यह टिप्पणी की।
आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में ध्यान देना जरूरी
जस्टिस रविंदर डूडेजा ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में यह देखना जरूरी होता है कि पीड़ित मानसिक या भावनात्मक रूप से कमजोर था या उसे किसी मानसिक बीमारी की समस्या थी। ऐसे मामलों में उकसावे के लिए ठोस और उच्च स्तर के प्रमाण जरूरी होते हैं। कोर्ट ने कहा, उकसावे का मतलब होता है किसी व्यक्ति को अपराध करने के लिए भड़काना, साजिश रचना या जानबूझकर मदद करना। केवल प्रताड़ना या झगड़े उकसावे के लिए पर्याप्त नहीं हैं। शादी या परिवार में झगड़े होना सामान्य बात है, इन्हें आत्महत्या के लिए उकसाने का आधार नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि हर आत्महत्या का मामला उकसावे का नहीं होता। यह देखना जरूरी है कि आरोपी का व्यवहार ऐसा था कि कोई सामान्य व्यक्ति, न कि अत्यधिक संवेदनशील या अस्थिर व्यक्ति, आत्महत्या जैसा कदम उठाता।
यह है मामला
यह टिप्पणी कोर्ट ने उस समय की जब एक महिला और उसके बेटे को अग्रिम जमानत दी गई। उन पर आरोप था कि उन्होंने महिला के पति को आत्महत्या के लिए उकसाया, जिसकी मौत 30 अप्रैल पिछले साल हुई थी। आरोपियों के वकील ने कोर्ट को बताया कि मृतक पहले से ही आत्महत्या की प्रवृत्ति वाला था और उसका कई अस्पतालों में मानसिक इलाज चल रहा था। वकील ने यह भी आरोप लगाया कि मृतक अपनी पत्नी से अप्राकृतिक संबंध बनाने के लिए दबाव डालता था और उसके बेटे भी इस दुर्व्यवहार के गवाह थे। पत्नी ने पति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। जब पति को इसकी जानकारी हुई तो उसने आत्महत्या की धमकी दी और कहा कि वह सुसाइड नोट लिखकर उन्हें फंसा देगा।
प्रॉसिक्यूशन का पक्ष
सरकारी वकील ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि मरने से पहले मृतक ने एक व्हाट्सएप मैसेज भेजा था, जिसमें उसने आरोपियों द्वारा प्रताड़ित किए जाने और जहर दिए जाने की बात कही थी।
मेडिकल रिकॉर्ड में क्या था
आरोपियों ने कोर्ट में मृतक के मेडिकल रिकॉर्ड पेश किए, जिनसे पता चला कि वह डिप्रेशन, असामान्य व्यवहार, आत्महत्या की प्रवृत्ति और बाइपोलर डिसऑर्डर जैसी मानसिक बीमारियों से जूझ रहा था।
कोर्ट का निष्कर्ष
कोर्ट ने रिकॉर्डेड बातचीत के ट्रांसक्रिप्ट का हवाला देते हुए कहा कि मृतक ने आरोपियों के खिलाफ अपशब्द कहे थे, लेकिन प्रथम दृष्टया यह साबित नहीं होता कि उन्होंने आत्महत्या के लिए उकसाया। इसलिए कोर्ट ने महिला और उसके बेटे को अग्रिम जमानत दे दी।