
Supreme-Court
Grievous Injury: सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 387 के तहत अपराध साबित करने पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है।
धारा 387 के तहत डर पैदा करना ही काफी: सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें एक आरोपी के खिलाफ दर्ज शिकायत में जारी समन को रद्द कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जब तक संपत्ति या पैसा वास्तव में ना लिया गया हो, तब तक धारा 387 लागू नहीं होती। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि आईपीसी धारा 387 के तहत अपराध साबित को लेकर किसी संपत्ति की वास्तविक डिलीवरी आवश्यक नहीं है। केवल किसी व्यक्ति को मौत या गंभीर चोट के डर में डालना ही इस धारा के तहत अपराध को पूरा कर देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया अंतर
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 383 IPC, जिसमें ज़बर्दस्ती वसूली (extortion) की परिभाषा दी गई है, उसमें संपत्ति की डिलीवरी ज़रूरी है, जबकि धारा 387 में ऐसा नहीं है। केवल किसी को डराने की मंशा और उसे गंभीर चोट या मौत की धमकी देना ही इस अपराध को पूरा करता है।
क्या था मामला?
यह मामला सुपारी व्यवसायी द्वारा दर्ज कराई गई आपराधिक शिकायत से जुड़ा है। शिकायत में आरोप लगाया गया कि आरोपी और उसके साथियों ने उसे गन पॉइंट पर धमकाया और ₹5 लाख प्रति माह की मांग की, अन्यथा उसका व्यवसाय बंद करवाने की धमकी दी। ट्रायल कोर्ट ने समन जारी किया, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहते हुए मामला खारिज कर दिया कि कोई वसूली (actual extortion) नहीं हुई है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की दलील को बताया गलत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने धारा 383 की गलत व्याख्या करते हुए धारा 387 के आवश्यक तत्वों को नजरअंदाज किया। न्यायालय ने कहा कि शिकायत में साफ तौर पर दो बातें सामने आती हैं। शिकायतकर्ता को गन पॉइंट पर जान से मारने की धमकी दी गई। यह सब ₹5 लाख वसूलने के उद्देश्य से किया गया। इन दो तथ्यों से स्पष्ट होता है कि धारा 387 के तहत अपराध बनता है और हाईकोर्ट ने केवल यह देखकर कि रकम नहीं दी गई, समन को रद्द कर दिया, जो कि कानून के विपरीत है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2020 के फैसले का भी दिया हवाला
न्यायालय ने ‘सोमासुंदरम बनाम स्टेट’ (2020) 7 SCC 722 के मामले का हवाला देते हुए कहा कि वहां आरोपी ने पीड़ित को दस्तावेजों पर साइन करने की धमकी दी और बाद में उसकी हत्या कर दी। इसके बावजूद कोर्ट ने आरोपी को धारा 387 के तहत दोषी माना।
अदालत ने ट्रायल कोर्ट में बहाल किया मामला
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट में मामला बहाल कर दिया और दोनों पक्षों को सहयोग करने का निर्देश दिया। साथ ही, मामले की जल्द सुनवाई के लिए कहा। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कानून के उस पहलू को स्पष्ट करता है जिसमें ‘डर’ ही एक महत्वपूर्ण तत्व है। इस निर्णय से यह संदेश गया है कि डर पैदा कर धन की मांग करना, भले ही पैसा न मिला हो, गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।