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अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनु अग्रवाल ने कहा, बाल यौन शोषण के गंभीर और व्यापक प्रभाव हो सकते हैं। यह पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, जो जीवन भर उसे परेशान करता रहता है।
Court News: अभियुक्त किसी भी तरह की नरमी का हकदार नहीं है
अदालत ने 25 मार्च को कहा, फैसले में अपराध की गंभीरता और 2017 में आरोपी द्वारा जिस तरीके से यह कृत्य किया गया था, उसे ध्यान में रखा गया। अभियुक्त किसी भी तरह की नरमी का हकदार नहीं है। आरोपी ने कथित तौर पर बच्ची को तब अगवा कर लिया था जब वह पार्क में खेलने गई थी और उसके साथ यौन उत्पीड़न किया। इस अपराध की गंभीरता का अंदाजा पीड़िता के शरीर पर मिले घावों से लगाया जा सकता है। छह साल की उम्र में, बिना किसी गलती के, उसे अपनी शारीरिक चोटों की मरम्मत के लिए बाल चिकित्सा सर्जरी करानी पड़ी और वह लगभग 15 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रही। अदालत ने यह भी कहा कि छोटी बच्ची द्वारा सहन किया गया शारीरिक दर्द और मानसिक आघात अतुलनीय है।
जीवनकाल के शेष भाग जेल में बिताएगा आरोपी
अदालत दुष्कर्म के मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा पर सुनवाई कर रही थीं। कहा, आठ साल पहले छह साल की नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म के मामले में आरोपी को कठोर आजीवन कारावास की सजा भुगतनी होगी। जिसका अर्थ है कि उसे अपने प्राकृतिक जीवनकाल के शेष भाग तक जेल में रहना होगा। कोर्ट ने कहा, वह किसी भी तरह की नरमी का हकदार नहीं है। उसे पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराया गया था। यह भी कहा, बच्चा अत्यधिक मानसिक आघात से गुजरता है, जो अक्सर दिखता भी नहीं है। यह
झूठी पहचान व अलग नाम के तर्क को किया खारिज
अदालत ने 21 मार्च को आरोपी को दोषी ठहराते हुए, अदालत ने उसकी झूठी पहचान और अलग नाम होने के बचाव तर्क को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि आरोपी का नाम गलत हो सकता है, लेकिन पीड़िता ने उसे पहचान लिया। जब पीड़िता से वीडियो लिंक के माध्यम से आरोपी को दिखाया गया, तो उसने उसे पहचान लिया और देखते ही अपना चेहरा सहायक व्यक्ति की गोद में छिपा लिया। फैसले में कहा गया कि एक बार अदालत में अभियुक्त की पहचान हो जाने के बाद, उसके नाम को लेकर कोई विवाद अप्रासंगिक हो जाता है।