
Supreme-Court
GANGSTERS ACT: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधि (निवारण) अधिनियम, 1986 के तहत दर्ज एक मामले को खारिज कर दिया।
चार्जशीट में एफआईआर से अलग कोई नई बात नहीं थी
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि जांच एजेंसियों ने इस मामले में बेहद लापरवाही दिखाई है। चार्जशीट में एफआईआर से अलग कोई नई बात नहीं थी। कोर्ट ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि जिन एजेंसियों को नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा की जिम्मेदारी दी गई है, वे इतनी लापरवाही से काम कर रही हैं। यह एफआईआर जुलाई 2018 में इलाहाबाद में दर्ज की गई थी। कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसियों का काम सिर्फ निष्पक्ष जांच करना है, न कि यह तय करना कि आरोपी दोषी है या नहीं।
आरोपी पर गैंगस्टर एक्ट की धारा 2 और 3 के तहत आरोप सिद्ध
कोर्ट ने कहा कि यह समझ से परे है कि जांच एजेंसी ने कैसे यह मान लिया कि आरोपी पर गैंगस्टर एक्ट की धारा 2 और 3 के तहत आरोप सिद्ध हो गए हैं। बेंच ने इस रवैये की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि जांच एजेंसी को यह अधिकार नहीं है कि वह खुद ही तय कर ले कि अपराध साबित हो गया है। कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसियों को याद रखना चाहिए कि उनका काम सिर्फ निष्पक्ष जांच करना है। आरोपी दोषी है या नहीं, यह फैसला ट्रायल कोर्ट को करना होता है।
हाईकोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती
यह फैसला विनोद बिहारी लाल की अपील पर आया, जिन्होंने अप्रैल 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी। हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ चल रही कार्यवाही और गैर-जमानती वारंट को रद्द करने से इनकार कर दिया था।
कोर्ट ने कहा- यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोप बहुत सामान्य और अस्पष्ट हैं। ऐसे में आरोपी को ट्रायल का सामना करने के लिए मजबूर करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो न्याय का हनन होगा।
गैंगचार्ट को लेकर नियमों का उल्लंघन
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधि (निवारण) नियम, 2021 का हवाला देते हुए कहा कि नियम 17 के तहत सक्षम अधिकारी को गैंगचार्ट पर हस्ताक्षर करने से पहले स्वतंत्र रूप से सोच-विचार करना जरूरी है। पहले से तैयार गैंगचार्ट पर सिर्फ हस्ताक्षर करना नियमों का उल्लंघन है।
संयुक्त बैठक के बिना गैंगचार्ट को मंजूरी
कोर्ट ने कहा कि नियम 5(3)(a) के अनुसार गैंगचार्ट को मंजूरी देने से पहले जिलाधिकारी, पुलिस कमिश्नर, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और पुलिस अधीक्षक की संयुक्त बैठक जरूरी है। लेकिन इस मामले में ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है जिससे यह साबित हो कि ऐसी कोई बैठक हुई थी।
यह रही सुप्रीम कोर्ट की अंतिम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए और कहा कि कानून की प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है, ताकि किसी व्यक्ति के अधिकारों का हनन न हो। कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ दर्ज केस को खारिज कर दिया।