
playing cards deck
GAMBLING case: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अगर कोई व्यक्ति ताश सिर्फ मनोरंजन और समय बिताने के लिए खेलता है और उसमें सट्टेबाजी या जुए का कोई तत्व नहीं है, तो इसे अनैतिक आचरण (मोरल टरपिट्यूड) नहीं माना जा सकता।
हर काम जो संदेह पैदा करे, वह अनैतिक नहीं: कोर्ट
कोर्ट ने यह टिप्पणी कर्नाटक की एक को-ऑपरेटिव सोसाइटी के सदस्य हनुमंथरायप्पा वाईसी के मामले में की, जिनका चुनाव सिर्फ इसलिए रद्द कर दिया गया था क्योंकि वे कुछ लोगों के साथ सड़क किनारे ताश खेलते पकड़े गए थे और उन पर ₹200 का जुर्माना लगाया गया था। कोर्ट ने कहा कि हनुमंथरायप्पा को बिना किसी ट्रायल के जुर्माना किया गया और उन्हें आदतन जुआरी भी नहीं माना जा सकता। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा, “हर वह काम जो संदेह पैदा करे, जरूरी नहीं कि वह अनैतिक हो। ताश खेलने के कई तरीके होते हैं और अगर यह सिर्फ मनोरंजन के लिए हो, तो इसे अनैतिक नहीं कहा जा सकता।”
चुनाव में सबसे ज्यादा वोट मिले थे
कोर्ट ने बताया कि हनुमंथरायप्पा को गवर्नमेंट पोर्सलीन फैक्ट्री एम्प्लॉइज हाउसिंग को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में सबसे ज्यादा वोटों से चुना गया था। इसके बावजूद, उनके खिलाफ कर्नाटक को-ऑपरेटिव सोसाइटी एक्ट, 1959 की धारा 17(1) के तहत कार्रवाई करते हुए उनका चुनाव रद्द कर दिया गया।
हाईकोर्ट का फैसला भी पलटा
हनुमंथरायप्पा के खिलाफ यह आरोप लगाया गया था कि वे कर्नाटक पुलिस एक्ट, 1963 की धारा 87 के तहत जुए के मामले में दोषी पाए गए थे। इस आधार पर चुनाव को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने भी चुनाव रद्द करने के फैसले को सही ठहराया था। इसके बाद हनुमंथरायप्पा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “इस तरह की मामूली घटना के लिए चुनाव रद्द करना अत्यधिक कठोर सजा है। हम इस कार्रवाई को सही नहीं मानते।” कोर्ट ने हाईकोर्ट और अन्य अधिकारियों के आदेशों को रद्द करते हुए हनुमंथरायप्पा का चुनाव बहाल कर दिया है। अब वे अपना कार्यकाल पूरा कर सकेंगे।