
Women holding decoration in store
Forum News: सुप्रीम कोर्ट ने उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए एक स्थायी फोरम बनाने की जरूरत पर जोर दिया।
उपभोक्ता फोरम में सदस्यों की संख्या बढ़ाने का सुझाव
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस एम. एम. सुंदरेश की बेंच ने कहा कि उपभोक्ता विवादों के लिए एक स्थायी न्यायिक फोरम की संभावना पर केंद्र सरकार हलफनामा दाखिल करे। यह फोरम उपभोक्ता ट्राइब्यूनल या उपभोक्ता कोर्ट के रूप में हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि उपभोक्तावाद संविधान में निहित है, इसलिए उपभोक्ता फोरम में अस्थायी नियुक्तियों की कोई जरूरत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि इस फोरम में स्थायी सदस्य, अधिकारी और अध्यक्ष होने चाहिए। केंद्र सरकार चाहे तो मौजूदा जजों को भी इन फोरम का प्रमुख बनाने पर विचार कर सकती है। साथ ही, इनकी संख्या भी पर्याप्त रूप से बढ़ाई जानी चाहिए।
स्थायित्व से बढ़ेगी न्याय की गुणवत्ता
कोर्ट ने कहा कि न्याय देने वाले पदों पर स्थायित्व से उनकी कार्यक्षमता और गुणवत्ता बढ़ती है। अस्थायी नियुक्तियों से फैसलों की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे उपभोक्ताओं को नुकसान होता है। उपभोक्ता को समय पर और गुणवत्तापूर्ण फैसला मिलना चाहिए, यही उपभोक्तावाद की असली पहचान है।
मौजूदा ढांचे में बदलाव की जरूरत
बेंच ने कहा कि अब समय आ गया है कि उपभोक्ता फोरम में कार्यकाल आधारित नियुक्तियों की सोच बदली जाए। कोर्ट ने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेगी और जरूरी कदम उठाएगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि मौजूदा कानून में गलती करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान तो है, लेकिन अनुच्छेद 227 जैसी स्पष्ट निगरानी व्यवस्था नहीं है। ऐसे में केंद्र सरकार को सभी स्तरों पर उपभोक्ता फोरम की संख्या बढ़ाने पर भी विचार करना चाहिए।
यह है पृष्ठभूमि
यह आदेश उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के क्रियान्वयन में खामियों को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। कोर्ट ने कहा कि उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए स्थायी और मजबूत व्यवस्था जरूरी है।