
Supreme Court
DOWRY case: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दहेज प्रताड़ना और क्रूरता से जुड़े कानूनों के दुरुपयोग पर चिंता जताई।
एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया था
यह फैसला जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सुनाया। यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ अपील से जुड़ा था, जिसमें एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने उसे आईपीसी की धारा 498ए (क्रूरता) और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत लगे आरोपों से बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पत्नियां अक्सर पति के बुजुर्ग माता-पिता, दूर के रिश्तेदारों और अलग रह रही बहनों तक को झूठे मामलों में फंसा देती हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में बिना तारीख, समय और घटना का जिक्र किए आरोप लगाए जाते हैं, जिससे शिकायत की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं।
कानून का उद्देश्य ही कमजोर हो रहा
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में हर रिश्तेदार को आरोपी बनाना एक खतरनाक प्रवृत्ति बनती जा रही है, जिससे कानून का उद्देश्य ही कमजोर हो रहा है। पत्नी की ओर से लगाए गए आरोप अस्पष्ट थे, जिनमें कोई ठोस विवरण या सबूत नहीं थे। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक सजा केवल सामान्य आरोपों के आधार पर नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायत में किसी भी घटना की तारीख, समय या ठोस विवरण नहीं था। साथ ही, गर्भपात के आरोप को साबित करने के लिए कोई मेडिकल रिकॉर्ड भी नहीं दिया गया।
महिला ने दिसंबर 1999 में शिकायत दर्ज कराई थी
महिला ने दिसंबर 1999 में शिकायत दर्ज कराई थी, जबकि पति ने उससे करीब एक साल पहले तलाक की अर्जी दी थी। इससे शिकायत की मंशा पर भी सवाल उठते हैं। कोर्ट ने कहा कि महिला और उसके पिता की गवाही के अलावा कोई स्वतंत्र या दस्तावेजी सबूत नहीं था। इसलिए हाईकोर्ट का 2018 का फैसला रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पति को सभी आरोपों से बरी कर दिया।