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Domestic violence: सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक हिंसा की शिकायत को खारिज करते हुए कहा–पत्नी की शिकायत अस्पष्ट और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
निचली अदालत के आदेश को रद्द किया
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक पति की उस याचिका को खारिज कर दिया गया था, जिसमें उसने अपनी पत्नी द्वारा दायर घरेलू हिंसा की शिकायत को चुनौती दी थी। जबकि दोनों ने आपसी सहमति से तलाक की अर्जी दायर की थी।
तीन महीने बाद पत्नी ने तलाक की याचिका वापस ली
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि पत्नी द्वारा लगाए गए आरोप अस्पष्ट और सामान्यीकृत हैं। चार मार्च को अपने आदेश में शीर्ष कोर्ट ने कहा- पत्नी द्वारा लगाए गए आरोप जैसे कि उसे घर से निकाल दिया, उसे प्रताड़ित किया गया ये सभी आरोप न केवल अस्पष्ट और सामान्य हैं। बल्कि यह सभी उस दिनांक से पहले के हैं जिस दिन (09 अक्टूबर 2019) दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से तलाक के लिए संयुक्त याचिका दायर की थी। इस दंपत्ति का विवाह अप्रैल 2018 में हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था। अक्टूबर 2019 में वैवाहिक मतभेद के कारण दोनों ने आपसी तलाक की याचिका दाखिल की। तीन महीने बाद पत्नी ने यह याचिका वापस ले ली।
पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कर दी
इसके बाद पत्नी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कर दी। पति ने इस शिकायत की वैधता को यह कहते हुए चुनौती दी कि दोनों के बीच आपसी तलाक की कार्यवाही पहले से लंबित है। हालांकि, जम्मू की एक अदालत ने पति की याचिका खारिज कर दी और मामले को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने लेकिन पति को राहत देते हुए जम्मू कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और पत्नी द्वारा दायर की गई पूरी शिकायत को कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग बताया।
घटनाओं की श्रृंखला पर सवाल
पीठ ने कहा, मामले की प्रकृति, शिकायत में लगाए गए आरोप और घटनाओं की श्रृंखला को ध्यान में रखते हुए, हमें लगता है कि पूरी शिकायत कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग मात्र है। इस मामले में याचिकाकर्ता पति की ओर से अधिवक्ता अक्षत मलपानी, वंदना गुप्ता और राहुल गुप्ता ने पैरवी की।