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DISABLED KYC: सुप्रीम कोर्ट ने विकलांग व्यक्तियों और तेजाब हमले के पीड़ितों के लिए डिजिटल नो योर कस्टमर (KYC) दिशानिर्देशों में बदलाव का निर्देश दिया।
कई पीड़ित योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं: अदालत
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि दृष्टिहीनता सहित विकलांगता और तेजाब हमले से पीड़ित लोग डिजिटल KYC प्रक्रिया पूरी करने में असमर्थ हैं, जिससे वे बैंक खाता खोलने जैसी सेवाओं या कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते। अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक अभिन्न हिस्सा डिजिटल पहुंच का अधिकार भी है।
अदालत की ओर से 20 दिशानिर्देश जारी
अदालत ने यह भी नोट किया कि इस प्रक्रिया में व्यक्ति को अपने सिर को हिलाने और चेहरे को एक विशेष स्थिति में लाने जैसे दृश्य कार्य करने होते हैं, जो चेहरा क्षतिग्रस्त या विकृत होने के कारण इन व्यक्तियों के लिए संभव नहीं होता। इस कारण, विकलांग व्यक्तियों को अपनी पहचान प्रमाणित करने, बैंक खाता खोलने, आवश्यक सेवाओं तक पहुँचने या सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में देरी होती है या वे इनसे वंचित रह जाते हैं। इस संदर्भ में अदालत ने कुल 20 दिशानिर्देश जारी किए हैं।
डिजिटल पहुंच का अधिकार एक अविभाज्य हिस्सा: कोर्ट
पीठ की ओर से निर्णय सुनाते हुए न्यायमूर्ति महादेवन ने कहा कि डिजिटल पहुंच का अधिकार, संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का एक अविभाज्य हिस्सा है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान और विधिक प्रावधानों के अंतर्गत याचिकाकर्ताओं को डिजिटल KYC प्रक्रिया में सुलभता और उचित सुविधा की माँग करने का वैधानिक अधिकार प्राप्त है। अदालत ने कहा कि यह अत्यंत आवश्यक है कि डिजिटल KYC दिशानिर्देशों में एक्सेसिबिलिटी कोड को शामिल कर संशोधन किए जाएं।
कई जगहों पर डिजिटल खाई बरकरार
पीठ ने विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले विकलांगों की समस्याओं को उजागर करते हुए कहा कि चूंकि स्वास्थ्य जैसी आवश्यक सेवाएं अब डिजिटल माध्यम से प्राप्त की जा रही हैं, इसलिए अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार की व्याख्या तकनीकी यथार्थता के आधार पर की जानी चाहिए। डिजिटल खाई, जो डिजिटल बुनियादी ढांचे, कौशल और सामग्री तक असमान पहुँच के कारण बनी है, न केवल विकलांग व्यक्तियों बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों की बड़ी आबादी, वरिष्ठ नागरिकों, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए भी व्यवस्थित बहिष्कार को बनाए रखती है।
कमजोर वर्गों के लिए सुलभ वाली व्यवस्था बनाई जाए
सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य की इस जिम्मेदारी पर बल दिया कि वह एक समावेशी डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करे जो सभी के लिए विशेष रूप से हाशिए पर और कमजोर वर्गों के लिए सुलभ हो। चूंकि अब अधिकांश कल्याणकारी योजनाएं और सरकारी सेवाएं ऑनलाइन माध्यमों से दी जा रही हैं, इसलिए डिजिटल खाई को पाटना एक सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य बन गया है। अदालत ने निर्देश दिया कि सभी सरकारी पोर्टल, शिक्षण प्लेटफ़ॉर्म और वित्तीय तकनीकी सेवाएं हाशिए पर और कमजोर वर्गों के लिए सार्वभौमिक रूप से सुलभ होनी चाहिए। साथ ही, यह भी कहा कि संविधान के प्रावधानों के तहत राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि KYC प्रक्रिया सभी नागरिकों के लिए सार्वभौमिक रूप से सुलभ हो।