
Committee for the Protection of Democratic Rights and Secularism...File Photo
Delhi News: सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी. एन. श्रीकृष्ण ने कहा, देश में मानवाधिकारों का मामला गंभीर संकट का सामना कर रहा है।
पांच करोड़ से अधिक मामले विभिन्न अदालतों में लंबित
न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने कमेटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स एंड सेक्युलरिज़्म (CPDRS) के लोकतांत्रिक अधिकारों और धर्मनिरपेक्षता पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन में कहा, सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में पांच करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।
मानवाधिकारों और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के उल्लंघन पर चिंता जताई
संगठन की ओर से जारी प्रेस नोट के अनुसार, न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने मानवाधिकारों और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के उल्लंघन पर “गंभीर चिंता” व्यक्त की। कहा, न्याय में देरी, न्याय से इनकार के समान है। असहमति व्यक्त करने और विरोध करने का अधिकार लोकतंत्र की आत्मा है। न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने कहा कि लोकतंत्र में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए, कानून का शासन होना चाहिए और धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह होना चाहिए कि लोग अन्य धार्मिक मान्यताओं को भी सहन करें। लेकिन अब भारत में ये सभी बुनियादी मूल्य खतरे में हैं। पूर्व न्यायाधीश ने कहा, पिछले 10 वर्षों से न्यायिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता गंभीर खतरे में है। नागरिक समाज को आगे आकर लोगों के कठिन संघर्ष से प्राप्त अधिकारों पर हो रहे इन हमलों से लड़ना होगा।
फर्जी मुठभेड़ों और जेल यातनाओं में भारी वृद्धि हुई
पूर्व न्यायाधीश ए. के. पटनायक ने हिरासत में मौतों, फर्जी मुठभेड़ों और जेलों में प्रताड़ना के मुद्दों को उजागर करते हुए कहा कि देश में लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करने वाले संस्थान ही इनका सबसे अधिक उल्लंघन कर रहे हैं। इन संस्थानों द्वारा लोकतांत्रिक अधिकारों का सबसे अधिक हनन हो रहा है। हिरासत में मौतों, फर्जी मुठभेड़ों और जेल यातनाओं में भारी वृद्धि हुई है। कहा, समानता आधारित समाज बनाने के बजाय, धन कुछ लोगों के हाथों में सिमट रहा है और जिस तरह से समाज विभाजित हो रहा है, मुझे लगा कि अब नहीं तो कभी नहीं, इसलिए मुझे आगे आना पड़ा।
आयोग व सीएजी शासन के अनुचर बन गए : प्रशांत भूषण
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा, भारत में मौलिक अधिकारों का खुला उल्लंघन” हो रहा है। संवैधानिक संस्थानों को नष्ट किया जा रहा है और दमनकारी कानून लागू किए जा रहे हैं। चुनाव आयोग और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) सत्तारूढ़ शासन के अनुचर” बन गए हैं। उन्होंने भाजपा को वित्तपोषण में गड़बड़ी करने की शक्तियों का दुरुपयोग करने दिया, लेकिन विपक्षी दलों के खातों की जांच की। सरकार का विरोध करने वालों को जेल में डाल दिया गया है और वे वर्षों तक बिना मुकदमे के जेल में पड़े हुए हैं। लोगों को अपने डर से बाहर निकलकर दमनकारी कानूनों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। सम्मेलन में यह भी कहा गया कि आदिवासी, दलित, महिलाएं, बच्चे और अन्य वंचित समुदाय सबसे अधिक शोषण और मानवाधिकार उल्लंघन का शिकार हो रहे हैं।
मानव स्वतंत्रता सूचकांक 2023 में भारत पिछड़ा
प्रेस नोट के अनुसार, CPDRS ने दावा किया कि संयुक्त राष्ट्र मानव स्वतंत्रता सूचकांक 2023 में भारत को 165 देशों में 109वें स्थान पर रखा गया, और 2015 से 2023 के बीच इसका कुल स्कोर 9 प्रतिशत गिर गया। 2021 में अकेले 31,677 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, और 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 4.45 लाख तक पहुंच गई। हिरासत में हिंसा अब भी जारी है। रिपोर्ट में दावा किया कि वर्ष 2022 के पहले नौ महीनों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने 147 पुलिस हिरासत में मौतें, 1,882 न्यायिक हिरासत में मौतें और 119 फर्जी मुठभेड़ों को दर्ज किया। चौंकाने वाली बात यह है कि भारत की 5.5 लाख जेल आबादी में से 77 प्रतिशत कैदी जमानत मिलने के बावजूद जेलों में बंद हैं।
मणिपुर में 175 लोगों की हत्या कर दी गई…
सम्मेलन में यह भी कहा गया कि गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA), राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) और सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) जैसे दमनकारी कानूनों के साथ-साथ केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) जैसी एजेंसियों के दुरुपयोग ने लोगों में भय पैदा कर दिया है। मणिपुर में 175 लोगों की हत्या कर दी गई और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हो गए।
सम्मेलन में फिलिस्तीन पर पारित किया गया…
सम्मेलन ने एक मुख्य प्रस्ताव और एक अन्य प्रस्ताव फिलिस्तीन पर पारित किया, और देश के बुद्धिजीवियों तथा आम नागरिकों को मानवाधिकार आंदोलन को मजबूत करने के लिए एकजुट करने का संकल्प लिया। CPDRS एक नागरिक मंच है जिसकी स्थापना दिवंगत न्यायाधीश वी. आर. कृष्णा अय्यर, दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर और अन्य लोगों ने की थी, ताकि न केवल लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की जा सके बल्कि धर्मनिरपेक्षता को भी बनाए रखा जा सके।