
Order Food to the Service Boy at Restaurant
Delhi HC: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, रेस्तरां भोजन बिलों पर सेवा शुल्क अनिवार्य रूप से नहीं लगा सकते, क्योंकि यह सार्वजनिक हित के खिलाफ है। यह अनुचित व्यापार व्यवहार के समान है।
उपभोक्ताओं के लिए दोहरी मार है सेवा शुल्क
अदालत ने कहा कि सेवा शुल्क की वसूली उपभोक्ताओं के लिए दोहरी मार साबित हो रही है, क्योंकि उन्हें सेवा कर के ऊपर वस्तु एवं सेवा कर (GST) का भुगतान करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। सेवा शुल्क या जिसे आम बोलचाल में टिप कहा जाता है, यह ग्राहक द्वारा स्वेच्छा से किया गया भुगतान होता है। यह अनिवार्य या बाध्यकारी नहीं हो सकता। रेस्तरां द्वारा अनिवार्य रूप से और जबरन सेवा शुल्क वसूलने की प्रथा उपभोक्ता हित के विरुद्ध है और उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन करती है।
दो अलग-अलग याचिकाओं पर हुई सुनवाई
फेडरेशन ऑफ होटल्स एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशंस ऑफ इंडिया (FHRAI) और नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) ने 2022 में इस मामले में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की थीं। NRAI के अनुसार, भारत में उसके 7,000 रेस्तरां हैं और दिल्ली-एनसीआर में 2,500 सदस्य आउटलेट हैं।
FHRAI ने दावा किया कि वह देशभर के 55,000 होटलों और 5,00,000 रेस्तरांओं के हितों का प्रतिनिधित्व करता है। उपभोक्ता शिकायतों और रेस्तरां बिलों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट था कि सेवा शुल्क मनमाने ढंग से वसूला जा रहा था और जबरदस्ती लागू किया जा रहा था, और ऐसी स्थिति में वह मूक दर्शक नहीं बनी रह सकती।
याचिकाकर्ताओं पर एक-एक लाख रुपये जुर्माना लगाए गए
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने 131 पृष्ठों के अपने फैसले में इस आधार पर रेस्तरां संगठनों की याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के उन दिशानिर्देशों को चुनौती दी थी, जो होटल और रेस्तरां को भोजन बिलों पर सेवा शुल्क अनिवार्य रूप से लगाने से रोकते हैं।अदालत ने इन दिशानिर्देशों को सही ठहराते हुए याचिकाकर्ताओं पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे उपभोक्ता कल्याण हेतु सीसीपीए के पास जमा करना होगा। अदालत ने कहा कि रेस्तरां द्वारा सेवा शुल्क को अनिवार्य रूप से लगाना सार्वजनिक हित के खिलाफ है और इससे उपभोक्ताओं के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचता है।
निष्पक्ष व्यापार के सिद्धांतों को विकृत करता है…
अदालत ने कहा, यह ग्राहकों पर एक अतिरिक्त आर्थिक बोझ डालता है और निष्पक्ष व्यापार के सिद्धांत को विकृत करता है, क्योंकि ग्राहक को सेवा की गुणवत्ता से संतुष्ट होने या न होने के बावजूद अनिवार्य रूप से यह शुल्क चुकाना पड़ता है। आगे कहा, इसके अलावा, ऐसा शुल्क एक अनुचित मूल्य निर्धारण संरचना बनाता है, जो पारदर्शिता से रहित होती है और इसलिए सार्वजनिक हित के खिलाफ है।
CPA के तहत दिशा-निर्देश जानने का उपभोक्ताओं को अधिकार
अदालत ने कहा कि सीसीपीए को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA) के तहत दिशानिर्देश जारी करने का पूरा अधिकार है और उनका पालन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि व्यवसाय करने के मौलिक अधिकार के तहत रेस्तरां को बेचे जा रहे भोजन और प्रदान की जा रही सेवाओं के लिए शुल्क लेने की अनुमति होगी। न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, कोई भी प्रतिष्ठान अपने उत्पादों की कीमतों को अपनी इच्छानुसार तय करने के लिए स्वतंत्र है, जिसमें कच्चे माल, वेतन, खर्चे, पूंजीगत व्यय, मशीनरी आदि को ध्यान में रखा जाता है। हालांकि, एक बार मूल्य निर्धारण हो जाने के बाद, उसके ऊपर अनिवार्य रूप से निर्धारित सेवा शुल्क वसूलना उचित नहीं होगा ।
श्रमिक समझौतों और कर्मचारियों से किए गए अनुबंधों के तर्क को किया खारिज
अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत स्वतंत्रता तब बाधित होगी, जब किसी प्रतिष्ठान को अपनी वस्तुओं की कीमत निर्धारित करने से रोका जाए, न कि जब उपभोक्ता हित में कोई कदम उठाया जाए। अदालत ने कहा कि सेवा शुल्क को अलग-अलग नामों से वसूलना “भ्रामक और धोखाधड़ीपूर्ण” है और यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत अनुचित व्यापार प्रथा के दायरे में आता है। अदालत ने रेस्तरां संगठनों द्वारा सेवा शुल्क की वसूली को सही ठहराने के लिए दिए गए इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि यह श्रमिक समझौतों और कर्मचारियों से किए गए अनुबंधों का हिस्सा है।
सेवा शुल्क भुगतान व वसूली कानून के खिलाफ
अदालत ने कहा कि उपभोक्ता अधिकारों को इस तर्क के आधार पर नहीं दबाया जा सकता कि उपभोक्ता जब रेस्तरां में प्रवेश करता है, तो वह सेवा शुल्क का भुगतान करने के लिए अनुबंध में बंध जाता है, क्योंकि सेवा शुल्क का भुगतान और उसकी वसूली स्वयं कानून के खिलाफ है। हालांकि, फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि ग्राहक सेवा के लिए स्वेच्छा से कोई टिप देना चाहते हैं, तो उस पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा। आगे कहा, हालांकि, इस राशि को डिफ़ॉल्ट रूप से बिल या चालान में नहीं जोड़ा जाना चाहिए और इसे ग्राहक की इच्छा पर छोड़ देना चाहिए।
दिशा-निर्देश का उल्लंघन करनेवाले सजा के हकदार होंगे: अदालत
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी रेस्तरां प्रतिष्ठानों को सीसीपीए द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करना होगा और किसी भी उल्लंघन की स्थिति में कानूनी कार्रवाई की जाएगी। अदालत ने कहा कि सेवा शुल्क को पारदर्शी तरीके से उपभोक्ताओं के सामने प्रस्तुत नहीं किया जा रहा था, जिससे उपभोक्ताओं के “जानने के अधिकार” का हनन हो रहा था। “वास्तव में, जैसे ही रेस्तरां ग्राहक से सेवा शुल्क लेने को अनिवार्य करते हैं, भोजन की कीमत में कम से कम 10 से 15 प्रतिशत की वृद्धि स्वतः हो जाती है, जिसका ग्राहक को मेनू कार्ड देखते समय पता नहीं होता। यह निष्पक्षता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, क्योंकि उपभोक्ता को खरीदी जा रही खाद्य वस्तुओं की सटीक लागत जानने का पूर्ण अधिकार है।