
Delhi HC: दिल्ली हाई कोर्ट ने सीबीआई, ईडी और अन्य ऐसे विभागों में फैले भ्रष्टाचार कार्यपालिका की नींव हिलाने की तरह है।
ट्रायल कोर्ट के फैसले को लेकर दी गई थी चुनौती
न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने भ्रष्टाचार के एक मामले में तीन सीबीआई अधिकारियों को उनकी ही जांच एजेंसी (सीबीआई) की हिरासत में सौंप कर गंभीर टिप्पणी की। कहा, यह सीबीआई, ईडी और अन्य ऐसे विभागों में फैले भ्रष्टाचार का एक अनूठा मामला है, जो हमारी कार्यपालिका और जांच मशीनरी की पूरी नींव को हिला देता है। इनका प्रमुख दायित्व अपराधों की जांच करना और अपराधियों को दंड दिलाना है। उन्होंने सीबीआई और ईडी जैसी देश शीर्ष जांच एजेंसियों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर सवाल उठाया। दरअसल, यह आदेश सीबीआई की उस याचिका पर आया, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा तीनों आरोपित अधिकारियों को एजेंसी की हिरासत में देने से इंकार करने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
विभिन्न विभागों के अधिकारियों के बीच बड़े षड्यंत्र को दर्शाता है: कोर्ट
25 अप्रैल को दिए आदेश में अदालत ने कहा, शिकायत से यह स्पष्ट हुआ कि यह मामला केवल कुछ सरकारी अधिकारियों द्वारा किए गए अलग-थलग भ्रष्टाचार का नहीं था, बल्कि यह विभिन्न विभागों के अधिकारियों के बीच बड़े षड्यंत्र को दर्शाता है। जिन्होंने रिश्वत लेकर अनैतिक लाभ पहुंचाया, जांच में हस्तक्षेप किया और विभागों के कार्यों को प्रभावित किया। न्यायालय ने कहा, यह स्पष्ट है कि वर्तमान मामले जैसी परिस्थितियों में, जब बड़े षड्यंत्र का पर्दाफाश करना हो, तो जांच के प्रारंभिक चरण में हिरासत में पूछताछ से इनकार नहीं किया जा सकता। आरोपित षड्यंत्र की गंभीरता और व्यापकता को ध्यान में रखते हुए, तीनों प्रतिवादियों को दो दिन की पुलिस रिमांड पर सीबीआई को सौंपा जाता है।
ट्रायल कोर्ट ने सीबीआई हिरासत की याचिका खारिज कर दिया
10 अप्रैल को ट्रायल कोर्ट ने आरोपितों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया था और 15 अप्रैल को सीबीआई की हिरासत याचिका को खारिज कर दिया था। सीबीआई ने आरोपियों की 10 दिन की रिमांड मांगी थी, यह कहते हुए कि मामला वरिष्ठ सीबीआई अधिकारियों द्वारा एजेंसी की जांच को प्रभावित करने से जुड़ा है और यदि इसकी गहन जांच नहीं की गई, तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे। न्यायालय ने आदेश में कहा कि जांच अभी शुरुआती अवस्था में है और बड़े षड्यंत्र का खुलासा करने के लिए तीनों आरोपितों की पूछताछ अनिवार्य है। अदालत ने यह भी कहा कि यह कहना सही नहीं होगा कि पूछताछ का उद्देश्य कबूलनामे को जबरन प्राप्त करना है और गंभीर अपराधों के आरोपियों को न्याय व्यवस्था का मजाक बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।