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Court View: इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रयागराज बेंच के न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने कानपुर नगर के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश डॉ अमित वर्मा को निर्णय लिखने में असमर्थता को गंभीरता से लिया है।
न्यायिक प्रशिक्षण संस्थान, लखनऊ में कराएं ट्रेनिंग
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि उन्हें न्यायिक प्रशिक्षण संस्थान, लखनऊ में तीन महीने के प्रशिक्षण के लिए भेजा जाए। न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने कानपुर नगर की मुन्नी देवी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया। याचिका में किरायेदारी विवाद में कुछ अतिरिक्त आधार जोड़ने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी। आक्षेपित आदेश की आलोचना करते हुए यह दलील दी गई कि न्यायाधीश ने संशोधन आवेदन पर निर्णय लेते समय अपने विवेक का प्रयोग नहीं किया और केवल तर्क दर्ज करके संशोधन आवेदन को तीन-पंक्ति के आदेश में खारिज कर दिया।
मुन्नी देवी बनाम शशिकला पांडेय की याचिका की सुनवाई
यह मामला मुन्नी देवी बनाम शशिकला पांडेय की याचिका की सुनवाई के दौरान दिया। अदालत ने कहा कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ अमित वर्मा कारण व निष्कर्ष का उल्लेख आदेश में नहीं करते हैं। अदालत ने ऐसे ही उनके आदेश को रद्द करते हुए उसको नए सिरे से करने का निर्देश दिया था। लेकिन वही गलती दोबारा निर्देश में दोहराई गई। कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को मुख्य न्यायाधीश से आदेश प्राप्त करते हुए उक्त अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को प्रशिक्षण पर भेजने का निर्देश दिया। यह प्रशिक्षण न्यायिक प्रशिक्षण व शोध संस्थान लखनऊ में कराया जाए। साथ ही जिला सत्र न्यायाधीश को संबंधित पुनरीक्षण याचिका किसी अन्य अपर जिला जज को सुनवाई करने के लिए स्थानांतरित करने का भी निर्देश दिया।
वर्ष 2013 में किराया वसूली व बेदखली वाद दायर
शशिकला पांडेय ने वर्ष 2013 में किराया वसूली व बेदखली वाद दायर किया था। इस वाद पर 29 फरवरी 2024 को याची के खिलाफ डिक्री हो गया। इसके खिलाफ याची ने पुनरीक्षण याचिका दाखिल की। सात नवंबर 2024 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने खारिज कर दिया। इस आदेश में कारण व निष्कर्ष को लेकर कोई उल्लेख नहीं किया गया। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने एडीजे को उक्त आदेश रद्द कर नए सिरे से आदेश के लिए पत्रावली फिर से भेज दी। इसी बीच याची ने पुनरीक्षण याचिका में नए आधार जोड़ने की संशोधन अर्जी लगाई, इसे एडीजे ने बिना कोई कारण बताए एक मार्च 2025 को निरस्त कर दिया। इस आदेश को फिर से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। याचिका में कहा गया कि एडीजे ने पहले आदेश में जो गलती की थी, वहीं गलती दोबारा से दिए आदेश में की है। इस कारण हाईकोर्ट दोबारा आदेश को रद्द करे। इस पर अदालत ने एडीजे के फैसला लिखने की काबिलियत पर सवाल उठा दिया।