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Court News: दिल्ली हाईकोर्ट ने जांच एजेंसियों को बैंक खातों को बिना सोचे-समझे ब्लॉक करने के बजाय सतर्कता और सावधानी बरतने की सलाह दी है।
एक कंपनी के बैंक खाते को ब्लॉक करने के मुद्दे पर सुनवाई
न्यायमूर्ति मनोज जैन के समक्ष एक मामले में एक कंपनी के बैंक खाते को ब्लॉक करने का मुद्दा आया, जिसमें ₹93 करोड़ से अधिक की निकासी शेष थी, लेकिन खाते में केवल ₹200 की एक साधारण एंट्री हुई थी। अदालत ने कहा, यदि इस प्रकार के व्यापक उपाय बिना किसी कारण के अपनाए जाते हैं, तो यह ऐसे खाताधारकों की वित्तीय स्थिति पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
पूरे खाते को फ्रीज करने से याचिकाकर्ता हो गए असहाय
अदालत ने कहा कि पूरे खाते को फ्रीज करने की वजह से याचिकाकर्ता पूरी तरह असहाय हो गया और इसके कारण कई चेक बाउंस हो गए तथा व्यवसाय संचालन बाधित हो गया। अंत में, अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में शिकायतकर्ता के अधिकार और निर्दोष खाताधारकों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है, ताकि अनावश्यक कठिनाइयों से बचा जा सके।
विवादित राशि पर ही रोक लगाने की संभावना तलाशा जाए…
अदालत ने 20 फरवरी के अपने आदेश में कहा, “अब समय आ गया है कि जांच या कानून प्रवर्तन एजेंसियां बैंक खातों को फ्रीज करने के संदर्भ में आवश्यक सावधानी, सतर्कता और हां, कुछ हद तक संवेदनशीलता भी अपनाएं। अदालत ने कहा कि खातों को पूरी तरह फ्रीज करने के बजाय अधिकारियों को विवादित राशि पर ही रोक (लियन) लगाने की संभावना तलाशनी चाहिए, ताकि खाताधारकों को अनावश्यक कठिनाइयों से बचाया जा सके और विवादित राशि भी सुरक्षित रहे।
मामले को लेकर एसओपी बनाए गृह मंत्रालय: हाई कोर्ट
अदालत ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस तरह के कई मामलों को देखते हुए ऐसे मुद्दे को हल करने और एक समान नीति बनाने का निर्देश दिया। गृह मंत्रालय को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों सहित सभी संबंधित पक्षों से परामर्श करने के लिए कहा गया, ताकि एक समान नीति, मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) और दिशानिर्देश तैयार किए जा सकें, जिससे इस तरह के मामलों को उचित विचार और संवेदनशीलता के साथ निपटाया जा सके।
पुलिस की गलती से कई लोगों को होती है परेशानी
अदालत ने कहा, यह मुद्दा एक बार फिर सामने आया है और कई ऐसे मामले अदालतों में आ रहे हैं। मौजूदा मामले में अदालत को ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि याचिकाकर्ता, जिसका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता प्रीतम सिंह कर रहे थे, साइबर अपराध का आरोपी था। संभव है कि कंपनी का उस अपराध से कोई संबंध न हो, जिसकी जांच की जा रही है, और वह अनजाने में लाभार्थी बन गई हो। आदेश में आगे कहा गया, ऐसे साइबर अपराधों में, यदि कोई ठग किसी शिकायतकर्ता को धोखा देकर उसकी राशि से कुछ खरीदता है, तो पुलिस उस धन के स्रोत का पता लगाते हुए संबंधित बैंक खातों को फ्रीज करने का निर्देश देती है, जिससे कई निर्दोष प्राप्तकर्ताओं को बिना किसी गलती के नुकसान उठाना पड़ता है।
खाता फ्रिज करने के पीछे उचित कारण पुलिस को बताना चाहिए
अदालत ने नोट किया कि इस मामले में केवल ₹200 की विवादित राशि को सुरक्षित रखने के बजाय पूरे खाते को फ्रीज कर दिया गया। हालांकि अदालत ने माना कि किसी जांच एजेंसी को बैंक को खाता फ्रीज करने का निर्देश देने का अधिकार है, लेकिन उसने इस स्थिति में निर्णय के पीछे स्पष्ट तर्क न होने की ओर इशारा किया। जब कोई जांच एजेंसी पूरे खाते को फ्रीज करने की सिफारिश करती है, तो उसे इसके पीछे उचित कारण बताने चाहिए। विशेष रूप से छोटे कारोबारियों और विक्रेताओं के लिए, इस तरह की कार्रवाई उनके अस्तित्व को खतरे में डाल सकती है और उनके जीवन को कठिन बना सकती है। “