
Discuss with Wife of Marriage Dispute
Court News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हर सहमति पर आधारित संबंध, जिसमें विवाह की संभावना हो सकती है। इस संबंध के टूटने की स्थिति में झूठे वादे से विवाह का बहाना नहीं माना जा सकता है।
एक पूर्व न्यायिक अधिकारी को 2015 में दर्ज हुई थी प्राथमिकी
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह टिप्पणी की कि यह देख रहे हैं कि जब रिश्ते खराब हो जाते हैं, तो आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। हर सहमति से बना रिश्ता, जिसमें विवाह की संभावना हो, उसे संबंध टूटने पर झूठे वादे के रूप में नहीं देखा जा सकता। यह टिप्पणी उस समय आई, जब शीर्ष अदालत ने कलकत्ता हाई कोर्ट के एक आदेश को खारिज कर दिया। इसमें एक पूर्व न्यायिक अधिकारी को 2015 में दर्ज एक एफआईआर में दुष्कर्म के आरोप से मुक्त करने से इनकार किया गया था। इस मामले में याचिकाकर्ता कोलकाता के सिटी सिविल कोर्ट में वरिष्ठ डिवीजन सिविल जज के पद से सेवानिवृत्त हुए एक पूर्व न्यायिक अधिकारी थे।
याचिकाकर्ता स्वयं भी अपनी पत्नी से अलग रह रहे थे
एफआईआर में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि 2014 में, जब वह अपने पहले पति के साथ वैवाहिक विवाद में कानूनी प्रक्रिया में थी, तब उसकी मुलाकात याचिकाकर्ता से हुई, जो स्वयं भी अपनी पत्नी से अलग रह रहे थे। उसने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने उसे आश्वासन दिया था कि वह उससे विवाह करेगा और उसके तथा उसके पहले विवाह से हुए पुत्र की पूरी जिम्मेदारी लेगा, जब उसका तलाक हो जाएगा। शिकायतकर्ता का आरोप था कि जब उसका तलाक हो गया, तब याचिकाकर्ता ने उससे दूरी बनाना शुरू कर दी और उसे संपर्क न करने के लिए कहा।
भ्रम या झूठे वादे के आधार पर दुष्कर्म का दावा नहीं कर सकती
पीठ ने कहा कि यदि एफआईआर और चार्जशीट में किए गए आरोपों को भी मान लिया जाए, तो यह असंभव प्रतीत होता है कि शिकायतकर्ता ने केवल विवाह के आश्वासन के कारण शारीरिक संबंध बनाए होंगे। मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता के बीच शारीरिक संबंध आपसी सहमति से थे, और यह नहीं कहा जा सकता कि यह उसकी इच्छा के विरुद्ध या बिना सहमति के थे। यहां तक कि यदि यह संबंध विवाह के प्रस्ताव पर आधारित माना जाए, तो भी महिला “तथ्य के भ्रम या झूठे वादे के आधार पर दुष्कर्म का दावा नहीं कर सकती है।
हाई कोर्ट के फरवरी के आदेश को किया रद्द
शीर्ष कोर्ट ने फैसले में कहा, शुरुआत से ही वह इस बात से अवगत थी और जानती थी कि याचिकाकर्ता एक वैवाहिक संबंध में था, भले ही वह अलग रह रहे थे। कोई यह तर्क दे सकता है कि याचिकाकर्ता प्रभाव की स्थिति में था, लेकिन रिकॉर्ड में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे प्रलोभन या लुभाना साबित हो। इस तरह की याचिकाएं कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग हैं, और आगे की कार्रवाई दोनों पक्षों की पीड़ा को ही बढ़ाएगी, जो पहले से ही अपनी-अपनी अलग ज़िंदगियाँ जी रहे हैं। इस कारण सुप्रीम कोर्ट ने “न्याय के हित में” कार्यवाही को समाप्त करने का निर्णय लिया। अपील को स्वीकार करते हुए, पीठ ने हाई कोर्ट के फरवरी 2024 के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि याचिकाकर्ता को जनवरी 2016 में हाई कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत दी जा चुकी थी।