
Court News: दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुलिस आयुक्त और एम्स के चिकित्सा अधीक्षक यौन उत्पीड़न से बचे नाबालिगों की पहचान किसी भी तरह से उजागर नहीं करने की व्यवस्था करें। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने पॉक्सो मामले पर सुनवाई के दौरान की है।
पहचान छिपाने में विफल रहे जांच अधिकारी
23 दिसंबर, 2024 को अपने आदेश में न्यायाधीश ने कहा, जांच अधिकारी मेडिकल जांच सहित किसी भी तरीके से पीड़िता की पहचान छिपाने में विफल रहा। यह जांच अधिकारी और संबंधित जांच करने वाले डॉक्टर पर खराब प्रभाव डालता है। अधिकारी की विफलता पर कड़ा रुख अपनाते हुए अदालत ने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि भविष्य में कानून का ऐसा कोई उल्लंघन न हो।
अदालत को भविष्य में अनुपालन रिपोर्ट भी दें
अदालत ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, आईपीसी और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम के प्रावधानों को ध्यान में रखा और बच्चे की पहचान के सार्वजनिक प्रकटीकरण पर प्रतिबंध की ओर इशारा किया। यह भी कहा कि इस आदेश की एक प्रति पुलिस आयुक्त और चिकित्सा अधीक्षक, एम्स को भेजी जाए। इसमें उचित दिशानिर्देश जारी करें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ऐसे मामलों में पीड़ित की पहचान की रक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय किए जाएं और ऐसा उल्लंघन न हो। भविष्य में अनुपालन रिपोर्ट अदालत के समक्ष रखी जाएगी।
आरोपी की सजा 20 वर्ष से 10 वर्ष हो गई
अदालत ने घटा दी सजा पीसीओएसओ अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न के एक मामले में व्यक्ति की सजा के खिलाफ अपील से संबंधित था। दोषी को 2021 में 20 साल कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी। उच्च न्यायालय ने उसे पॉक्सो अधिनियम की धारा 18 के तहत दोषी ठहराते हुए 5,000 रुपये जुर्माने के साथ जेल की सजा को घटाकर 10 साल कर दिया।
अगर थोड़ा सा भी संदेह हो तो आरोपी को मिले लाभ
डॉक्टर को दिए गए नाबालिग के बयान और उसकी मां द्वारा पुलिस को दिए गए बयान पर अदालत ने विचार किया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के लिए “गंभीर” अपराध के मामलों में किसी भी उचित संदेह से परे अपने मामले को साबित करने की सीमा अधिक थी, लेकिन वर्तमान मामले में इसके गवाहों की गवाही पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं थी। इसमें कहा गया, अगर थोड़ा सा भी संदेह है तो इसका लाभ आरोपी को मिलना चाहिए।