
Person holding medicine bottle
Court News: दुर्लभ रोग स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) के उपचार के लिए दवा भारत में कम कीमत पर उपलब्ध कराई जा सकती है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने दवा निर्माता से जवाब मांगा है।
दवा निर्माता से जवाब मांगा गया
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने दवा निर्माता से यह जवाब तब मांगा, जब 24 वर्षीय महिला, जो ग्रुप III की दुर्लभ बीमारी SMA से पीड़ित है, की ओर से पेश वकील ने बताया कि यह दवा एम/एस एफ. हॉफमैन-ला रोश लिमिटेड द्वारा भारत में महंगे दाम पर बेची जा रही है, जबकि पाकिस्तान और चीन में इसकी कीमत कम है।
दवा सस्ती उपलब्ध कराने पर हुई चर्चा
पीठ ने आदेश दिया, विवाद की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, हम यह उपयुक्त समझते हैं कि दवा निर्माता एम/एस एफ. हॉफमैन-ला रोश लिमिटेड को नोटिस जारी किया जाए। अगली सुनवाई की तारीख पर, अदालत को सूचित किया जाए कि यह दवा पड़ोसी देशों में किस मूल्य पर बेची जा रही है। यदि कीमत भारत से कम है, तो यह भी बताया जाए कि क्या भारत में भी यह दवा उसी सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराई जा सकती है।
सेबा की ओर से अदालत में दिया तर्क
सेबा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने पीठ को बताया कि पाकिस्तान और चीन में यह दवा सस्ती इसलिए है क्योंकि वहां की सरकारों ने इसमें हस्तक्षेप किया है। तर्क दिया कि भारतीय सरकार भी इस अंतरराष्ट्रीय दवा निर्माता से बातचीत कर दवा को सस्ती दर पर उपलब्ध क्यों नहीं करा सकती। शीर्ष अदालत ने यह मामला 8 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध किया है, यह ध्यान में रखते हुए कि भारत में कई मरीज इस दुर्लभ रोग से पीड़ित हैं।
हाईकोर्ट के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी
24 फरवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें केंद्र सरकार को सेबा (24) को 18 लाख रुपये मूल्य की अतिरिक्त दवाएं उपलब्ध कराने के लिए कहा गया था, जबकि ऐसी दवाओं के लिए केंद्र सरकार की योजना के तहत पहले ही 50 लाख रुपये तक की सहायता मिलती है। केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है।
पीड़ित मरीजों के लिए सस्ता इलाज उपलब्ध कराने के लिए कहा…
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अगली सुनवाई तक, विवादित निर्णय के प्रभाव पर रोक रहेगी। याचिकाकर्ताओं को यह छूट रहेगी कि वे कानून के अनुसार सेबा द्वारा किए गए अनुरोध की जांच करें। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि सेबा अन्य स्रोतों से भी अपने इलाज के लिए आर्थिक सहायता जुटाने की कोशिश कर सकती है। पीठ ने कहा,सेबा और भारत सरकार दोनों के लिए खुला रहेगा कि वे उस कंपनी से संपर्क करें जो यह दवा बनाती है, ताकि इस दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से पीड़ित मरीजों के लिए सस्ता इलाज संभव हो सके। सुप्रीम कोर्ट ने सेबा को अनुमति दी कि वह अदालत के आदेश की एक प्रति संबंधित दवा कंपनियों को भेजे और उनसे concessional rates (रियायती दरों) पर दवा उपलब्ध कराने का अनुरोध करे।