
view of people walking in the airport hallway
Court News: पटियाला हाउस कोर्ट के अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रणव जोशी ने आईजीआई एयरपोर्ट जैसे संवेदनशील जगह पर कारतूस मिले बटुए के वारिस की जानकारी नहीं मिलने पर आईओ यानि जांच अधिकारी को कड़ी फटकार लगाई।
जानबूझकर सीसीटीवी फुटेज नहीं जांच किया
अदालत ने शस्त्र अधिनियम के तहत आरोपी योगेश यादव के खिलाफ चले ट्रायल में कहा, पुलिस ने जानबूझकर एयरपोर्ट के सीसीटीवी फुटेज को पेश नहीं किया। जांच में जल्दबाजी में की गई। जांच अधिकारी(आईओ) ने ऐसा व्यवहार किया, जैसे वह केवल एक डाकघर हो। जैसे केवल यांत्रिक तरीके से चीजें आगे बढ़ानी हों। आगे कहा, यह स्थापित कानून है कि किसी आपराधिक मामले में जांच का उद्देश्य सत्य को सामने लाना होता है, और कुछ नहीं। कोर्ट ने आर्म्स एक्ट के आरोपी योगेश यादव को बरी कर दिया।
दिल्ली से पुणे की यात्रा कर रहा था आरोपी
20 मार्च 2018 को दिल्ली के समयपुर में मकान नंबर 277-ए निवासी योगेश यादव दिल्ली से पुणे की यात्रा कर रहा था। आईजीआई एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग के दौरान अभियुक्त के बटुए में एक जीवित कारतूस पाया गया। इसके बाद पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की। फॉरेंसिक जांच में उक्त कारतूस 7.65 मिमी कैलिबर का पाया गया। आरोपी के खिलाफ आर्म्स एक्ट के तहत आरोपपत्र दाखिल किया गया। 18 फरवरी 2019 को न्यायालय ने अपराध पर संज्ञान व 22 अप्रैल 2022 को आर्म्स एक्ट तहत आरोप तय हुए। हालांकि आरोपी ने दोष स्वीकार नहीं किया। आरोपी ने बयान में कहा कि उसे झूठा फंसाया गया है। जब्त बटुआ उसका नहीं था। बोर्डिंग से पहले चेकिंग के लिए कई लोग कतार में खड़े थे। इससे देर हुई और उसकी उड़ान छूट गई। उसने यह मुद्दा एक्स-रे मशीन पर तैनात अधिकारियों से उठाया, वहां बहस भी हो गई। अभियुक्त ने कोई बचाव साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया।
स्क्रीनिंग क्षेत्र की सीसीटीवी को कोर्ट में नहीं किया पेश
8 अप्रैल को फैसले में कोर्ट ने कहा, स्क्रीनिंग क्षेत्र की सीसीटीवी फुटेज सर्वोत्तम साक्ष्य हो सकती थी, जो सच्चाई को सामने ला सकती थी। सीसीटीवी फुटेज पेश न किए जाने को लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। जांच अधिकारी से उनके परीक्षण के दौरान सीसीटीवी फुटेज के बारे में पूछा गया, लेकिन उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने उक्त क्षेत्र की सीसीटीवी फुटेज एकत्र नहीं किया। उन्होंने ऐसा न करने का कोई कारण नहीं बताया। एयरपोर्ट जैसे स्थान पर, जो भारी निगरानी में रहता है, यह जांच अधिकारी का कर्तव्य था कि वह सीसीटीवी फुटेज प्राप्त करता और उसे न्यायालय में प्रस्तुत करता। यह स्थापित कानून है कि यदि अभियोजन उपलब्ध सर्वोत्तम साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहता है, तो उसके विरुद्ध प्रतिकूल अनुमान लगाया जा सकता है।
अदालत ने फैसले में यह भी बातें रखीं
कोर्ट ने कहा, कानून के अनुसार जांच अधिकारी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहा है। यदि उसने आरोपों की सच्चाई जानने के उद्देश्य से जांच की होती, तो आरोपों की वास्तविकता सामने आ जाती। यह प्रावधान शस्त्र और गोला-बारूद के कब्जे को लेकर है। मान लें कि पुलिस का यह दावा सही है कि बटुआ अभियुक्त का था। तब भी यह सिद्ध करना आवश्यक था कि अभियुक्त को उस गोला-बारूद के कब्जे की जानकारी थी और वह उसके पास जानबूझकर था। यह प्रश्न कि क्या केवल कब्जा ही अपराध सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है या क्या अभियुक्त की जानकारी आवश्यक है, अब एक स्थापित विषय है। वर्तमान मामले में भी कोई ऐसा साक्ष्य न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया। जिससे यह सिद्ध हो कि अभियुक्त को गोला-बारूद के कब्जे की जानकारी थी।