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Court News: अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनुज अग्रवाल ने एक मामले में सुनवाई करते हुए टिप्पणी दी, झूठ अक्सर बेबाक और खुला होता है, जबकि सच्चाई शर्म से झुकी रहती है।
बलात्कार के झूठे आरोप में फंसाने का आरोप
दिल्ली की एक अदालत ने एक महिला के खिलाफ झूठी गवाही (परजरी) की कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया। अदालत ने बलात्कार के झूठे आरोप में फंसाए गए एक व्यक्ति को बरी कर दिया और पाया कि यह एक हनी ट्रैप का मामला था, जहां महिला ने साजिशन व्यक्ति को फंसाकर उससे पैसे ऐंठने की कोशिश की थी। आरोपी पर बलात्कार, आपराधिक धमकी, महिला की गरिमा भंग करने, जबरन कपड़े उतारने और यौन उत्पीड़न के आरोप लगे थे।
यह रहा सुनवाई के बाद अदालती आदेश
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनुज अग्रवाल ने 1 अप्रैल को दिए अपने आदेश में कहा कि पीड़िता के बयान में भारी विरोधाभास है, और यह पूरी तरह से झूठ और मनगढ़ंत कहानी पर आधारित है। उन्होंने कहा, झूठ अक्सर बेबाक और खुला होता है, जबकि सच्चाई शर्म से झुकी रहती है। यह कथन इस मामले पर पूरी तरह लागू होता है। अदालत ने पाया कि महिला ने एक ऐसी कंपनी में नौकरी जॉइन करने का दावा किया, जो उस समय अस्तित्व में ही नहीं थी।
हनी ट्रैप का आरोप
अदालत ने कहा कि महिला ने आरोपी से डीमैट खाता खुलवाने के बहाने संपर्क किया, जबकि यह उसके नियोक्ता का उद्देश्य नहीं था। इसके बाद, उसने आरोपी को रोमांटिक संदेश भेजना शुरू किया, और फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) की रिपोर्ट समेत अन्य सबूतों से यह साबित हुआ कि महिला ने पहले से सोची-समझी साजिश के तहत आरोपी को फंसाया था। यह मामला पूरी तरह से हनी ट्रैप था, जिसमें महिला ने आरोपी को पैसे ऐंठने के लिए फंसाया।
झूठे आरोपों से निर्दोष व्यक्ति की बदनामी
आरोपी को बरी करते हुए अदालत ने कहा, यह स्पष्ट है कि महिला ने अदालत में झूठा बयान दिया और बलात्कार/छेड़छाड़ की झूठी कहानी गढ़ी। अदालत ने टिप्पणी की, सिर्फ बरी कर देना आरोपी के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि इस झूठे आरोप ने उसकी प्रतिष्ठा धूमिल कर दी और उसे मानसिक आघात पहुंचाया। न्यायाधीश ने कहा, अदालत को शिकायतकर्ता की चीखें ही नहीं सुननी चाहिए, बल्कि उस निर्दोष व्यक्ति की अनसुनी पुकार भी सुननी चाहिए, जो folded hands (हाथ जोड़कर) न्याय की गुहार लगा रहा है।
महिला के खिलाफ झूठी गवाही का मामला दर्ज
अदालत ने महिला के खिलाफ झूठी गवाही (परजरी) का मामला दर्ज करने का आदेश दिया। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 379 के तहत महिला के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए मामला मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सेंट्रल) की अदालत को भेजा गया। न्यायाधीश ने कहा, गवाह द्वारा ली गई शपथ एक गंभीर नैतिक कर्तव्य होती है, और इस महिला ने उस शपथ को तोड़कर अदालत को गुमराह किया है। इस फैसले ने झूठे आरोपों के चलते निर्दोष लोगों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को उजागर किया है। अदालत ने न केवल आरोपी को बरी किया, बल्कि झूठे मामलों के दुरुपयोग को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई की जरूरत पर भी जोर दिया।