
Courtroom scene inside the Delhi High Court. AI IMAGE
Court news: दिल्ली हाईकोर्ट ने हत्या के आरोप में लगभग सात साल से जेल में बंद आरोपी को जमानत दे दी। कहा- अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया कि मारा गया व्यक्ति कौन था।
10 हजार निजी मुचलके व इतनी राशि की जमानती देने पर रिहा किया
21 अप्रैल को एक आदेश में न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया ने कहा, कम से कम कहने पर भी, इस मामले की जांच इस अदालत की अंतरात्मा को झकझोर देती है। पीड़ित की पहचान अब तक रहस्य बनी हुई है। न्यायाधीश ने आगे कहा, अब तक मृतक की पहचान नहीं हो सकी है। जहां तक ‘अंतिम बार साथ देखा गया’ सिद्धांत की बात है, तो आरोपी को सोनी उर्फ छोटी के साथ देखा गया था, जो अब जीवित पाई गई है। अदालत ने कहा कि केवल पीड़ित की पहचान स्पष्ट न होने के कारण आरोपी की स्वतंत्रता को और नहीं छीना जा सकता। अंततः अदालत ने आदेश दिया, आवेदन को मंजूरी दी जाती है और निर्देश दिया जाता है कि आरोपी आवेदक को ₹10,000 के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के एक जमानती के साथ तुरंत जमानत पर रिहा किया जाए।
वर्ष 2018 में शव के टुकड़े-टुकड़े करने की हुई थी घटना
यह मामला आरोपी मनजीत कार्केट्टा का है। पुलिस ने आरोपी को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था। वर्ष 2018 से आरोपी जेल में है। घटना 2018 में हुई थी और शव की पहचान पहले सोनी उर्फ छोटी के रूप में की गई थी। लेकिन आरोपी की 17 मई 2018 को गिरफ्तारी के बाद सोनी जीवित पाई गई, और मारा गया व्यक्ति आज तक अज्ञात है। आरोपी ने जमानत की मांग में यह आधार बनाया कि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि मारा गया व्यक्ति कौन था। न्यायाधीश ने कहा, यह अत्यंत दुखद है कि एक व्यक्ति की इतनी निर्मम हत्या की गई और शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए, लेकिन आज तक मृतक की पहचान भी नहीं हो सकी। अदालत ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में करीब पांच चार्जशीट दाखिल की, लेकिन केवल जांच अधिकारी ही नहीं, बल्कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी जांच की निगरानी करनी चाहिए थी और उन्होंने इसमें लापरवाही बरती है।
अभियोजन पक्ष ने कहा, साक्ष्य आरोपी को हत्या से जोड़ता है
अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिका का विरोध किया और कहा कि “अंतिम बार साथ देखा गया” साक्ष्य आरोपी को हत्या से जोड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि पीड़ित के शरीर को फेंकने में इस्तेमाल किया गया बैग आरोपी के पास से बरामद हुआ था। इसके अलावा, अभियोजन पक्ष ने आरोपी को हत्या का दोषी ठहराने के लिए कॉल डेटा रिकॉर्ड्स का हवाला दिया, जिससे उसके घटनास्थल पर होने का संकेत मिलता है। इसके विपरीत, आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि आरोपी की उपस्थिति केवल मोबाइल टावरों के आधार पर आंकी गई है, जो बड़े क्षेत्र को कवर करते हैं। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह हत्या के समय घटनास्थल पर मौजूद था।