
Saket Court
Court news:साकेत जिला अदालत ने अपनी मां, ननिहाल पक्ष और अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ झूठा पॉक्सो मामला दर्ज करानेवाले पिता पर नकेल कसा है।
दिल्ली पुलिस के क्लोजर रिपोर्ट को अदालत ने किया स्वीकार
अदालत ने दिल्ली पुलिस को आरोपी के खिलाफ झूठा केस दर्ज कराने के मामले में उसी पर एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया है। आरोप है कि उसके कहने पर उसकी नाबालिग बेटी ने अपनी मां, ननिहाल पक्ष और अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ झूठा पॉक्सो मामला दर्ज कराया था। दक्षिण-पूर्व जिले के जैतपुर थाना क्षेत्र से संबंधित मामले में यह निर्देश दिल्ली पुलिस द्वारा दायर क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए दिया गया।
व्यक्तिगत लाभ के लिए कानून का हो रहा दुरुपयोग…
अदालत ने कहा, अब समय आ गया है कि ऐसे याचिकाकर्ताओं, जैसे कि शिकायतकर्ता का पिता, जो व्यक्तिगत लाभ के लिए कानून के प्रावधानों का दुरुपयोग करते हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। ऐसे लोगों के कारण ही वास्तविक मामलों को भी आम जनता संदेह की दृष्टि से देखने लगती है। विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो) अनु अग्रवाल ने जैतपुर थाना प्रभारी को आदेश दिया कि वह 3 अप्रैल के आदेश के तहत शिकायतकर्ता के पिता के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम की धारा 22(1) के अंतर्गत एफआईआर दर्ज करे और 9 अप्रैल तक अनुपालन रिपोर्ट अदालत में पेश करे।
पॉक्सो की धारा 22(1) का प्रावधान
अदालत ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 22(1) उन मामलों में दंड का प्रावधान करती है जहां किसी व्यक्ति ने केवल अपमानित करने, धमकाने, बदनाम करने या जबरन वसूली के उद्देश्य से झूठी शिकायत की हो। इस धारा के तहत अधिकतम छह माह की सजा, जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। हालांकि, धारा 22(2) यह स्पष्ट करती है कि यदि झूठी शिकायत किसी बच्चे द्वारा की गई हो, तो उस पर कोई दंड नहीं लगाया जाएगा।
पिता के कहने पर शिकायतकर्ता ने झूठी रिपोर्ट दर्ज कराई…
न्यायाधीश ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता ने अपने पिता के कहने पर झूठी शिकायत दर्ज की थी, जिसमें उसने अपने मामा, नानी, मौसी और यहां तक कि उस वकील को भी घसीटा जो उसकी मां और ननिहाल पक्ष की ओर से पेश हो रहा था। अदालत ने यह भी कहा, यह स्पष्ट है कि यह झूठी शिकायत केवल पारिवारिक विवादों की पृष्ठभूमि में की गई थी। पुलिस को निर्देश देते हुए अदालत ने कहा, वर्तमान मामले में, शिकायतकर्ता के पिता ने अपने ससुराल पक्ष के खिलाफ शिकायतकर्ता के माध्यम से झूठी शिकायत दर्ज करवाई। उन्होंने उस वकील को भी नहीं बख्शा, जो उनकी पत्नी और रिश्तेदारों की ओर से पेश हो रहा था। विशेष न्यायाधीश ने कहा, शिकायतकर्ता उस समय नाबालिग थी और अपने पिता के साथ रह रही थी। वह कानून की छात्रा थी और उसे अपने कृत्य के परिणामों का ज्ञान था, फिर भी अपने पिता को बचाने के लिए उसने झूठी शिकायत दर्ज कर दी।
वकील को डराने-धमकाने के इरादे से भी…
अदालत ने इस मामले को कानून के दुरुपयोग का एक क्लासिक उदाहरण बताया और कहा कि शिकायतकर्ता के पिता ने न केवल अपने व्यक्तिगत झगड़े निपटाने के लिए कानून का दुरुपयोग किया, बल्कि वकील को डराने-धमकाने के इरादे से भी ऐसा किया, जिसका एकमात्र दोष यह था कि वह उनके रिश्तेदारों को कानूनी सेवा दे रहा था। अंत में अदालत ने कहा, वकीलों को अदालत का अधिकारी माना जाता है। यह अत्यंत आवश्यक है कि वकील अपने मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व बिना डर, दबाव या झूठे मुकदमों के भय के कर सकें।