
Supreme Court CJI in a roundtable discussion in the UK Supreme Court
CJI Speech: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने कहा है कि मध्यस्थता (Arbitration) अब सिर्फ मेट्रो शहरों तक सीमित नहीं रही है।
लंदन में आयोजित LCIA इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सिम्पोजियम में संबोधन
लंदन में आयोजित LCIA इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सिम्पोजियम में बोलते हुए CJI गवई ने कहा कि तकनीक की मदद से यह देश के दूर-दराज इलाकों तक पहुंच चुकी है। उन्होंने कहा कि भारत अब वैश्विक मध्यस्थता जगत में ‘हस्तक्षेप करने वाला चाचा’ नहीं, बल्कि ‘सहयोगी बड़ा भाई’ बन गया है। वर्चुअल सुनवाई, लोकल केस मैनेजमेंट और संस्थाओं की पहल से भौगोलिक दूरी की बाधा खत्म हो रही है। उन्होंने कहा कि भारत की कॉमन लॉ परंपरा और मध्यस्थता के पक्ष में दिए गए फैसलों के चलते भारत की भूमिका अब वैश्विक स्तर पर निर्णायक बन रही है।
तकनीक और संस्थागत सहयोग से हो रहा विस्तार
CJI ने कहा कि भारत में सुप्रीम कोर्ट से लेकर जिला अदालतों और ट्रिब्यूनल्स तक वर्चुअल सुनवाई की सुविधा दी जा रही है। इससे मध्यस्थता की पहुंच बढ़ी है। उन्होंने कहा कि सही संस्थागत सहयोग, न्यायिक समर्थन और तकनीकी ढांचे के साथ भारत में मध्यस्थता अब सिर्फ मेट्रो शहरों तक सीमित नहीं, बल्कि देश के कारोबारी इलाकों में भी मजबूत हो रही है।
भारत अब नेतृत्व की भूमिका में
CJI गवई ने कहा कि भारतीय न्यायपालिका की परिपक्वता ने अब यह सवाल खड़ा कर दिया है कि ‘क्या भारत हस्तक्षेप करेगा?’ से ‘क्या भारत नेतृत्व करेगा?’ तक पहुंच गए हैं। दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर, इंडिया इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर, मुंबई सेंटर फॉर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन (MCIA) और हैदराबाद स्थित इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन एंड मेडिएशन सेंटर जैसी संस्थाएं इस दिशा में अहम भूमिका निभा रही हैं।
‘मेड इन इंडिया’ मध्यस्थता अवॉर्ड की ओर बढ़ रहा देश
CJI ने कहा कि भारत की कानूनी बिरादरी पहले से ही वैश्विक मध्यस्थता जगत का हिस्सा है। अब समय दूर नहीं जब ‘मेड इन इंडिया’ मध्यस्थता अवॉर्ड भी सामने आएंगे। उन्होंने कहा कि भारत अब लंदन, सिंगापुर और हांगकांग जैसे देशों के साथ वैश्विक मंच पर अपनी कुर्सी खुद लेकर पहुंच रहा है और नियम तय करने में भी भूमिका निभा रहा है।
सरकारी संस्थाएं संस्थागत मध्यस्थता को अपनाएं
CJI ने कहा कि अगर सरकारी कंपनियां और संस्थाएं अपने कॉन्ट्रैक्ट्स में संस्थागत मध्यस्थता को प्राथमिकता देंगी, तो इससे बड़ा बदलाव आएगा। उन्होंने कहा कि भारत में अभी भी कई पक्षों को एड-हॉक मध्यस्थता ज्यादा सुविधाजनक लगती है, लेकिन संस्थागत मध्यस्थता भी तेजी से अपनी जगह बना रही है।
न्यायिक हस्तक्षेप संतुलित होना चाहिए
CJI ने कहा कि मध्यस्थता से जुड़े मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप का मतलब जल्दबाजी नहीं है और निगरानी का मतलब अति-हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालतों को संतुलित हस्तक्षेप करना चाहिए, ताकि न्याय भी हो और मध्यस्थता की स्वतंत्रता भी बनी रहे।
अदालतें अब संयम बरत रही हैं
CJI ने कहा कि हाल के फैसलों से साफ है कि अदालतें अब दोबारा सुनवाई से बच रही हैं और सिर्फ उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप कर रही हैं, जहां प्रक्रिया में गंभीर गड़बड़ी या भारत की मूल नीति का उल्लंघन हुआ हो। उन्होंने कहा कि अदालतें अब अंतरिम राहत भी सिर्फ उन्हीं मामलों में दे रही हैं, जहां तत्काल और अपूरणीय नुकसान की आशंका हो।