
CBI Court: विशेष CBI कोर्ट ने 2008 कैश-एट-जज डोर मामले में CBI की जांच को नाकाफी बताते हुए कहा कि सीबीआई आरोपियों को दोषी साबित करने में बुरी तरह विफल रही।
13 अगस्त 2008 को हुई थी घटना
विशेष CBI न्यायाधीश अल्का मलिक ने टिप्पणी की कि CBI को अपने प्रारंभिक रुख पर बने रहना चाहिए था और मामले को बंद कर देना चाहिए था। 13 अगस्त 2008 को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की जज निर्मलजीत कौर के आवास पर ₹15 लाख की नकदी से भरा एक पैकेट गलती से पहुंच गया। आरोप था कि यह रकम न्यायमूर्ति निर्मल यादव के लिए रिश्वत के रूप में भेजी गई थी ताकि एक संपत्ति सौदे को प्रभावित किया जा सके। मामला पहले चंडीगढ़ पुलिस ने दर्ज किया, लेकिन बाद में इसे CBI को स्थानांतरित कर दिया गया।
17 साल तक चला मुकदमा, 84 में से 69 गवाह पेश हुए
इस मुकदमे में 17 वर्षों तक सुनवाई चली, और इस दौरान कई न्यायाधीशों ने इस मामले की सुनवाई की। प्रत्येक गवाह की गवाही में विरोधाभास दिखा, जिससे अभियोजन पक्ष कमजोर पड़ा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि CBI के पास कोई ठोस सबूत नहीं था और उसके अधिकांश गवाह मुकदमे के दौरान बयान बदलते रहे। इस फैसले से CBI की जांच प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े हुए हैं। कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसी को पहले ही यह समझ जाना चाहिए था कि मामला कानूनी रूप से कमजोर है। इस फैसले ने न्यायपालिका में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार-रोधी जांच की प्रभावशीलता को लेकर नई बहस छेड़ दी है।
29 मार्च को आए फैसले में सीबीआई कोर्ट ने यह कहा
CBI कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, अभियोजन पक्ष आरोपियों को दोषी साबित करने में पूरी तरह असफल रहा है, इसलिए सभी आरोपी रविंदर भसीन, राजीव गुप्ता, निर्मल सिंह और निर्मल यादव को बरी किया जाता है। सभी आरोपियों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 और IPC की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप दर्ज किए गए थे।
कोर्ट ने CBI की जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह बेहतर होता अगर CBI ने शुरू में ही इस मामले को बंद करने की रिपोर्ट पेश की होती, बजाय इसके कि उसने अविश्वसनीय गवाहों पर भरोसा किया। CBI द्वारा पेश किए गए प्रमुख गवाह आर. के. जैन की गवाही को कोर्ट ने अविश्वसनीय करार दिया।
मामले की जांच और कानूनी प्रक्रिया
- दिसंबर 2009: CBI ने मामले को बंद करने की रिपोर्ट पेश की, लेकिन CBI कोर्ट ने इसे मार्च 2010 में खारिज कर दोबारा जांच के आदेश दिए।
- नवंबर 2010: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी।
- मार्च 2011: भारत के राष्ट्रपति कार्यालय ने भी उनकी अभियोजन की मंजूरी दी।
- 4 मार्च 2011: CBI ने न्यायमूर्ति यादव के रिटायरमेंट के दिन ही उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी।
- 18 जनवरी 2014: सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति यादव की ट्रायल पर रोक लगाने की याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद CBI कोर्ट ने आरोप तय किए।