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CAT Case: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) की इलाहाबाद बेंच के अधिकार क्षेत्र में आने वाले मामलों को दिल्ली में सुने जाने पर गंभीर रुख अपनाया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में जवाब मांगा है।
दिल्ली में याचिका स्वीकार करना कानून के खिलाफ
जस्टिस अजीत कुमार ने अपने आदेश में कहा कि CAT के दिल्ली स्थित प्रिंसिपल बेंच के चेयरमैन ने प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 की धारा 25 के तहत केस ट्रांसफर की शक्ति की गलत व्याख्या की है। उन्होंने इलाहाबाद बेंच के अधिकार क्षेत्र में आने वाली नई याचिकाएं सीधे दिल्ली में स्वीकार कर लीं, जो कानून के खिलाफ है।
चार हफ्ते में जवाब मांगा
जज ने कहा कि चेयरमैन ऐसा सिर्फ इस आधार पर कर रहे हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिले दिल्ली के नजदीक हैं। कोर्ट ने यह टिप्पणी राजेश प्रताप सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। कोर्ट ने केंद्र सरकार और अन्य पक्षों को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 17 जुलाई को होगी।
वकीलों ने जताया विरोध
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में याचिकाएं सीधे स्वीकार किए जाने से इलाहाबाद में वकीलों ने काम बंद कर दिया है। उनका कहना है कि सभी याचिकाएं सिर्फ इस आधार पर दिल्ली में सुनी जा रही हैं कि संबंधित जिले दिल्ली के पास हैं।
कानूनी सवाल खड़ा हुआ
कोर्ट ने कहा कि यह एक बड़ा कानूनी सवाल है कि क्या सिर्फ दूरी के आधार पर प्रिंसिपल बेंच सीधे नई याचिकाएं सुन सकता है? अगर ऐसा होने लगे तो दिल्ली के पास के सभी मामलों को वहीं सुना जाएगा और इलाहाबाद बेंच की क्षेत्रीय शक्ति खत्म हो जाएगी।
धारा 25 का गलत इस्तेमाल
कोर्ट ने कहा कि अधिनियम की धारा 25 का उद्देश्य यह नहीं था कि चेयरमैन नियमित रूप से क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र को दरकिनार कर सीधे केस सुनें। यह कानून की भावना के खिलाफ है।
कोर्ट ने किया साफ
कोर्ट ने साफ किया कि क्षेत्रीय बेंच की स्थापना का मकसद ही यह था कि संबंधित क्षेत्र के मामलों की सुनवाई वहीं हो। सिर्फ दूरी के आधार पर केस ट्रांसफर करना कानून की मंशा के खिलाफ है।